Book Title: Mulshuddhi Prakaranam Part 02
Author(s): Dharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Shrutnidhi
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तो भणइ इमा "पिययम ! मा जंपसु एरिसाई वयणाई । जम्हा उं तुज्झ विरहं न समत्था विसहिउं अहयं ॥ ७५ ॥
कुटुं पितए समयं वच्चंतीए अईव सुहजणयं । ता निच्छएण तुमए सह गंतव्वं मए नाह ?" ॥७६॥ तन्नेहमोहिमई पडिवज्जिय तो महंतसत्थेण । गंतूण जलहितीरे आरुहइ पहाणवहणेसु ॥७७॥ जा जाइ जलहिमज्झे पहाणअणुकूलवायजोगेण । ताव तर्हि केणाऽवि हु उग्गीयं महुरसद्देण ॥७८॥
मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः
तं सोऊणं बाला सरलक्खणजाणिया पहिट्ठमुही । जंपइ "एसो पिययम ! गायइ कसिणच्छवी पुरिसो ॥७९॥
अइथूलपाणिजुयलो, बब्बरकेसो रणम्मि दुज्जेओ । उण्णयवच्छो साहस्सिओ य बत्तीसवारिसिओ ॥८०॥
गुज्झमि य रत्तमसो इमस्स ऊरुम्मि सामला रेहा " । इय सोउं से भत्ता, गयनेहो चितए एवं ॥ ८१ ॥ "नूणं इमेण समयं वसइ इमा तो वियाणई एवं । ता निच्छएण असई एसा अच्चंतपाविट्ठा ॥८२॥ आसि पुरा मह हियए महासई साविया इमा दइया । किंतु कयं मसिकुच्चयदाणमिमीए कुलदुगे वि ॥८३॥ ता किं खिवामि एयं उयहिम्मि उयाहु मोडिउं गलयं । मारेमि आरडंती किं वा घाएमि छुरियाए" ॥८४॥ इय चितइ जावेसो बहुविहमिच्छावियप्पपरिकलिओ । ता कूवयट्ठियन जंपइ रे ! धरह वहणाई ॥८५॥ एसो रक्खसदीवो, गिण्हह इह नीर - इंधणाईयं" । ते वि तयं पडिवज्जिय धरंति तत्थेव वहणाई ॥ ८६ ॥
पेच्छंति तयं दीवं गिण्हंती इंधणाइयं सव्वं । सो वि महेसरदत्तो मायाए जंपए एवं ॥८७॥

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