Book Title: Mulshuddhi Prakaranam Part 02
Author(s): Dharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Shrutnidhi
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मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः कोउगवसेण तत्तो आरूढा जावतत्थ ते ताव।। अभयसिरी दट्टणं आगयपण्हा विचितेइ ॥१३६॥ 'नूणं मह पुत्तेहिं पच्छण्णेहिं इमेहिं होयव्वं । एएणं वेसेणं' जाया एत्तरे रयणी ॥१३७॥ कट्ठोवरयम्मि ठिया देवी कुमरा य तढुवारम्मि । उवविट्ठा तो भणिओ लहुएणं भाउओ जेट्ठो ॥१३८॥ कहसु कहाणयमेगं भणइ इमो अम्ह संतिओ चेव । वुत्तंतो नणु भाउय ! कहाणयं किंच अन्नेण ?' ॥१३९॥ इयरेण वि पडिभणियं तं चेव य कहसु कोउयं मज्झ । सो जंपइ "रयणरे सिरिसेणनिवग्गमहिसीए ॥१४०॥ अभयसिरीए पुत्ता अम्हे णणु वच्छ ! दो वि निसुणेहि । अहयं अभग्गसेणो नाम तुमं पुष्फर्चुल त्ति ॥१४१॥ वच्छ ! अजायम्मि तए रज्जब्भट्ठाणि अम्हि नंदपुरे। पत्ताणि तत्थ अंबा मालागारितणं कासी ॥१४२॥ ताओ पुण वाणिज्जं चिटुंताणं कमेण तं जाओ । तो केणावि हु अंबा अवहरिया नेय जाणामो ॥१४३॥ तो अम्हे घेत्तूणं ताओ वि हु तग्गवेसणट्ठाए । वच्चंतो अडवीए नईए उत्तारिओ तं सि ॥१४४॥ जा मह आणणहेडं आगच्छइ ता नईए सो नीओ । अम्हे. वि हु धणसेणाए अप्पिया गोवपुत्तेहिं" ॥१४५।। जावेवं सो कुमरो जंपइ ता पयडपुलइया देवी । . भणइ 'अहं सा पुत्तय ! अभयसिरी तुम्ह जणणि' त्ति ॥१४६।। तो एवं सोऊणं कंठम्मि विलग्गिउं इमे रुण्णा । जंपइ अभग्गसेणो 'केण तुमं अंब ? अवहरिया ?' ॥१४७॥ भणइ इमा 'जो पुत्तय ! इमस्स वहणस्स सामिओ संखो । तेणऽवहरिया अहयं' कुविओ तं सुणिय सो कुमरो ॥१४८॥
१. सं.वा.सु. ते कुमरा । नू ॥ २. ला. 'चूलो ॥

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