Book Title: Mulshuddhi Prakaranam Part 02
Author(s): Dharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Shrutnidhi
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२९७
मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः
उट्ठित्तु ततो एसो सट्टाणे जाइ तत्थ तमदटुं । गविसइ सव्वत्तो च्चिय, पुच्छंतो परियणं सेव्वं ॥१६५॥ जाव न केण वि सिट्ठा तीए वत्ता वि तो गवेसेइ । उज्जाण-हट्ट-माइसु तत्थ वि नो जाव उवलद्धा ॥१६६॥ तो दुक्खपीडियंगो इमं उवायं विचिंतए एसो । 'जेणऽवहरिया बाला किं सो पयडेइ मह पुरओ?' ॥१६७।। तो वच्चामि इओऽहं बालं पयडेइ जेण सो दुट्ठो । इय भावणाइ भंडं, घेत्तूणं चलइ घरहुत्तं ॥१६८॥ पत्तो भरुयच्छपुरे संजत्तियवणियसंकुले रम्मे । तत्थऽत्थि तस्स मित्तो जिणदेवो नाम वरसडो ॥१६९॥ तस्सऽक्खइ सो सव्वं भणिओ 'तं जाहि तत्थ वरमित्त ! । कत्थ वि गवेसिऊणं तं बालं एत्थ आणेहि' ॥१७०॥ सो वि तयं पडिवज्जिय सामगि करिय जाइ तत्थेव । जाणाविया य वत्ता नम्मयपुरिसव्वसयणाणं ॥१७१॥ सोऊण तयं ताणि वि दुक्खत्ताई रुवंति अइकलुणं । एत्तो य नम्मयाए जं वित्तं तं निसामेह ॥१७२॥ । नाऊण वीरदासं गयं तओ हरिणियाए सा वुत्ता । "भद्दे ! कुण वेसत्तं माणसु विविहाइंसोक्खाई ॥१७३॥ सद्द-रस-रूव-गंधे फासे अणुहवसु मणहरे निच्चं । महघरवत्ता एसो, सव्वा वि हु तुज्झतणिय" त्ति ॥१७४॥ तं सोउं नम्मयसुंदरी वि विहुणित्तु करयले दो वि । पभणइ ‘मा भण भद्दे ?, कुल-सीलविदूसणं वयणं' ॥१७५॥ तो रुसिऊणं हरिणी ताडावइ त कसप्पहारेहिं ॥ फुल्लियर्किसुयसरिसा, खणेण जाया तओ एसा ॥१७६॥ 'अज्ज वि न किंचि नटुं, पडिवज्जसु मज्झ संतियं वयणं' । इय मेहरीए भणिए भणइ इमा 'कुणसु जं मुणसि' ॥१७७॥
१. ला. सयलं ॥ २. सं.वा.सु. जा न वि के ॥ ३. ला. विविहाणि सोक्खाणि ॥
मूल. २-३८

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