Book Title: Mulshuddhi Prakaranam Part 02
Author(s): Dharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Shrutnidhi
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३०६
मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः पहाणाईयं सव्वं कयं तओ भणइ पुष्फसिरिजणणी । वच्छे ! तं मह धूया एसो जामाउओ तम्हा ॥३२॥ चिट्ठह निच्चिताई मह गेहे तो इमाणि तत्थेव । चिट्ठति तओ देवी कोड्डेणं गुहइ पुप्फाणि ॥३शा पुष्फसिरीए भणियं 'भगिणि ! तुमं कुणसि जइ इमं कम्मं । तो आरामतिभागो तुह दिण्णो' मण्णइ तमेसा ॥३४॥ जाणित्तु तयं निवई माणसियमहादुहेण अक्तो । जंपइ “हा दिव्व ? तए कि एयं दारुणं विहियं ?॥३५।। जा हिंडंती जंपाणजाणमाईहिं वाहणेहिं सया । सा कह परकम्मकरी भूमीए भमइ विसमाए ? ॥३६॥ जा विविहचाडुएहिं सामिणि ! परमेसरि त्ति भण्णंती । सा कह इण्हि देवी भणिज्जए मालगारि त्ति ? ॥३७॥ ता जीविएण इण्हि किमिपा एवं विडंबणपरेणं" । . तं सोऊणं देवी जंपइ "मा सामि ! भण एवं ॥३८॥ सत्थेसु जओ सुव्वइ को वि निवो सह नियग्गमहिसीए । रज्जब्भट्ठो माहणवेसेणं वलइ सुत्तं ति ॥३९॥ तं विक्किणई देवी कालमुविक्खंतओ ठिओ एवं । समएणं संजाओ पुणरवि सो नाह ! नरनाहो ॥४०॥ ता मा कुणसु विसायं एवं चिय एत्थ पत्तयालं ति" । इय संबोहिय रायं तं कम्मं कुणइ अभयसिरी ॥४१॥ विज्जाहरबंधाई अपुव्वगुंफेहिं गुंफिडं कुसुमे । हट्टम्मि नेइ जा ता कइगेहिं न लब्भए मग्गो ॥४२॥ तो सुंदरिमालागारिणि त्ति लोगेहिं से कयं नामं । एवं विढविय दव्वं समप्पए नरवरिंदस्स ॥४३॥ तेणं दव्वेणं सो वाणिज्जं कुणइ जच्चवणिओ व्व । अप्पेण विकालेणं वित्थरिओ किंच रिद्धीए ॥४४॥
१. ला. विक्किणेई॥

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