Book Title: Mulshuddhi Prakaranam Part 02
Author(s): Dharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Shrutnidhi
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मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः
जइ नाम विसंघडिया एए ता किं नईए मज्झम्मि । एवमहं पक्खित्तो संदेहे जीवियस्सावि ?" ॥९७॥ एवं बहुप्पयारं सोयंतो नियमणम्मि सिरिसेणो । कट्टेण तेण नेउं पडमिणिखेडे पुरे खित्तो ॥ ९८ ॥ कट्ठम्मि तम्मि कूले लग्गम्मि विमोइऊण जंघाओ । वीसमइ तरुतलम्मी उज्जाणे पुरवरस्स बहिं ॥९९॥
तो य तत्थ नयरे अपुत्तराया परं भवं पत्तो । अहिवासियाइं तत्तो मंतीहिं वि पंच दिव्वाई ॥१००॥
बत्तीसलक्खणधरं रंज्जरिहनरं गवेसयंताइं ।
पत्ताइं तत्थ ठाणे सिरिसेणो जत्थ वीसमइ ॥ १०१ ॥ तो तेहिं तस्स अग्घो दिण्णो पंचहिं वि करिवरेणा वि । उक्खिविऊणं केंधे नियए आरोविओ सहसा ॥ १०२॥
तो सो राया जाओ पविसइ नयरम्मि नंदिघोसेणं । रायसहाए सीहासणम्मि उवविसइ विमणमणो ॥ १०३ ॥ तं दट्ठूणं मंती जंपइ 'किं देव ? दुम्मणा तुब्भे ? | रज्जभिसेओ जेणं पच्चूसे होहिई तुब्धं ॥ १०४॥
तो जंपइ पुहइवई 'मंति ? न रज्जेण किंचि मह कज्जं ' । 'किं कारणं ?' ति मंती पुच्छइ सो कहइ नीसेसं ॥ १०५ ॥
तं सोऊणं मंती जंपइ "देवेण दारुणं दुक्खं । अहह अहो ! अणुभूयं संपइ मण्णेमि तं खीणं ॥ १०६ ॥ जम्हा रज्जसिरी तुब्भे च्चिय नरवई इहं विहिया । ता तं चियरयणीए पुच्छह सव्वं किमण्णेण ?" ॥१०७॥ राया वि 'जुत्तिजुत्तं मंति! तुमे मंतियं' ति भणिऊण । रयणी सिरिदेवि इत्ता कुणइ पणिहाणं ॥ १०८॥ पडीहोऊण तओ जंपर देवी वि " मा कुण विसायं । देवी- सुएहिं जम्हा, मिलिहिसि तं नत्थि संदेहो ॥१०९ ॥
१. ला. रज्जरुह ॥ २. ला. खंधे ॥
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