Book Title: Mulshuddhi Prakaranam Part 02
Author(s): Dharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Shrutnidhi
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३०८
मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः
विण्णवइ "खम महासइ ! महमोहविमोहिएण जं सि मए । खलियरिया इण्हि पुण मह भगिणी तं सि अवियप्पं ॥५८॥ एत्तो य पडिनियत्तो मेलिस्सं भगिणि ! निव्वियप्पेण । सयणाणमओ सोयं मुय मह उवरि दयं काउं" ॥५९॥ इय सोऊणं देवी उवसामइ तस्स तं उवस्सग्गं । अभयसिरी वि य चिंतइ कि मेलइ एस सयणाणं ॥६०॥ जो इय अवहरिऊणं आणइ तो अणसणं महं जुत्तं । इय चितिय जाऽणसणं गिण्हइ ता देवया झ ति ॥६१॥ पयडीहोउं जंपइ "भद्दे ? मा कुणसु अणसणं जम्हा । मिलिहिसि पइ-पुत्ताणं बारसमे वच्छरे तंसि ॥६२॥ पउमिणि खेडम्मि पुरे" तो सा पडिवज्जिऊण तं कुणइ । छट्ठ-ऽट्ठम-दसम-दुवालेसाइ विविहं तवच्चरणं ॥३॥ एत्तो य निवो जंपइ पुष्फसिरि 'किंपि नणु चिरावेइ । सा तुह भगिणी भद्दे ! ता गंतुं तं गवेसेहि' ॥६४॥ तो सा चउहट्टय-देवभवणमाईसु भमइ पुच्छंती । 'सुंदरिमालागारी किं दिट्ठा केणवि कहिचि ?' ॥६५॥ जाव न तीए लद्धं पउत्तिमित्तं पि ताव आगंतुं । अक्खइ निवस्स जह ‘सा मण्णे केणावि हरिय' त्ति ॥६६॥ तं सोऊणं राया वज्जेणं ताडिओ व्व सव्वंगं ।। सोयइ बहुप्पयारं दोण्णि वि कुमरे पलोयं तो ॥६७॥ ते वि कुमारा दो वि हु जणणिमदटुं रुवंति रयणीए । दुक्खेण रोयइ निवो तेसु पसुत्तेसु सयमेव ॥६८॥ निग्गंतुं सवत्थ वि गवेसए जाव सव्वरयणि त्ति । दिवसस्स बि पहरम्मी गयम्मि अच्चंतपरिखिण्णो ॥६९॥ वलिऊण गओ गेहं ते वि कुमारा अपेच्छिउँ जणए । विलवंति बहुपयारं इंतं दटुं तओ जणयं ॥७०॥
१. ला. खमसु महसइ ! ॥ २. सं.वा.सु. लसेहिं ॥

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