Book Title: Mulshuddhi Prakaranam Part 02
Author(s): Dharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Shrutnidhi
View full book text
________________
२९८
मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः गाढयरं रुसिऊणं जाव पवत्तेइ तिक्खदुक्खाई । सा वेसा ता इयरा सुमरइ परमिट्ठिवरमंतं ॥१७८॥ तस्स पभावेण तओ, तड त्ति पाणेहिं हरिणिया मुक्का । रण्णो निवेइयम्मि, तम्मरणे भणइ तो राया ॥१७९।। "किंचिसरूवं अण्णं तट्ठाणे ठेवसु गुणगणसमग्गं+. भो मंति ! ममाऽऽणत्ति सिग्घं संपाडसु इम' ति ॥१८०॥ नरवइणो आणाए मंती जा तत्थ जाइ ता सहसा । दट्ठण नम्मयं सो अच्चंतं हरिसिओ चित्ते ॥१८१॥ जंपइ 'मेहरियपयं भद्दे ! तुह देमि रायवयणेणं' । सा वि तयं पडिवज्जइ परिभाविय निग्गमोवायं ॥१८२॥ ठविऊण मेहरिं तं मंती वि हु जाइ निययठाणम्मि । सा वि हु हरिणीदव्वं, वेसाणं देइ परितुट्ठा ॥१८३॥ तं कहियं केणाऽवि हु रण्णो तेणाऽवि जंपियं एवं । आणेह तयं एत्थं जंपाणं जाइ तो रम्मं ॥१८४॥ आरोविऊण तम्मि जा पुरिसा निति नयरमज्झेणं । ता चितइ "मह सीलं को खंड जीवमाणीए ? ॥१८५॥ को पुण इत्थ उवाओ?" चितंती नियइ एगठाणम्मि । अइकुहियदुब्भिगंधं पवहंतं गेहनिद्धवणं ॥१८६॥ तं पेच्छिऊण जंपइ 'भो भो बाढं तिसाइया अहयं' । तो मेल्लावइ जाणं जाणवई दरिसिउं विणयं ॥१८७॥ जा आणंति जलं ते ताव इमा उत्तरित्तु जाणाओ । सव्वंगियमप्पाणं चिक्खिल्लेणं विलिपेइ ॥१८८॥ . पियइ तयं दुग्गंधं अमयं नीरं ति भाणिउं बाला । लोलए महीइ पंसुं खिवइ सिरे देइ अक्कोसे ॥१८९॥ पभणइ य 'अहो लोया ! अहयं इंदाणिया ममं नियह' । गायइ नच्चइ रोवइ भयभीया सीलभंगस्स ॥१९०।।
१. सं.वा.सु ठवह ॥ .

Page Navigation
1 ... 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348