Book Title: Mulshuddhi Prakaranam Part 02
Author(s): Dharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Shrutnidhi
View full book text
________________
३०२
मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः अह अण्णम्मि दिणम्मी संवेगत्थं इमस्स सा गुणइ । सरमंडलं असेसं, जहा इमेयारिससरेण ॥२३०॥ होइ नरो इयवन्नो तहा इमेयारिसेण इयवरिसो । एवंविहेण य पुणो इयआऊ होइ अवियप्पो ॥२३१॥ एवंविहसद्देणं होइ मसो गुज्झदेसभायम्मि । एवंविहेण य पुणो, रेहा ऊर(रु)म्मि संभवइ" ॥२३२॥ एमाई अन्नं पि हु सव्वं सरलक्खणं सुणेऊण । सो हु महेसरदत्तो चित्तम्मि विभावए एवं ॥२३३॥ 'नूणं मह दइयाए सरलक्खणजाणियाए आइट्ठो । गुज्झपएसम्मि मसो, रेहा वि य तस्स पुरिसस्स' ॥२३४॥ तो विलविउं पयत्तो, "हा हा ! अइनिग्घिणो' अहं पावो । कूरो अणज्जचरिओ अवियारियकज्जकारि त्ति ॥२३५॥ जेण मए सा बाला सरलक्खणजाणिया अरण्णम्मि । एगागिणी विमुक्का ईसावसविनडियमणेण ॥२३६॥ करपत्तं वररयणं हारवियं निच्छयं अपुण्णेण । मरणेण विणा सुद्धी नत्थि महं किं बहुएण ?" ॥२३७॥ इय विलवंतं सोउं भणइ इमा "नम्मया अहं साउ । कहइ य जं जहवत्तं, नीसेसं अप्पणो चरियं ॥२३८।। ता संपइ मह भाया तुम अओ कुणसु संजमं विउलं" । सो वि तयं सोऊणं खामइ परमेण विणएण ॥२३९॥ 'खमसु तयं जं तइया अइनिद्दयकूरचित्तजुत्तेण । घोरम्मि दुहसमुद्दे पक्खित्ता सुद्धसीला वि' ॥२४०॥ तो भणइ नम्मयासुंदरी वि 'संतप्प मा तुमं एवं । अणुभवियव्वे कम्मे निमित्तमित्तं तुम जाओ ॥२४१॥ जंपइ तओ महेसरदत्तो गिण्हामि संजमं इण्हि ।
नीसेसकम्मदलणं आगच्छइ को वि जइ सूरी ॥२४२॥ १. सं.वा.सु. *णो महापावो ॥

Page Navigation
1 ... 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348