Book Title: Mulshuddhi Prakaranam Part 02
Author(s): Dharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
Publisher: Shrutnidhi
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२८८
मूलशुद्धिप्रकरणम्-द्वितीयो भागः
सासू-ससुराईणं पडिवत्तिं नम्मया विहेऊणं । चिट्ठइ विणएण तओ अप्पवसं कुणइ सव्वं पि ॥४९॥ सो वि महेसरदत्तो धम्मम्मि दढो कयत्थमप्पाणं । लाभेण तीए मन्नइ विलसइ नाणाविणोएहिं ॥५०॥ सिरिदत्ता वि पुणो वि हु पडिवज्जइ पुव्वसेवियं धर्म । अहअन्नया कयाई सा नम्मयसुंदरी हिट्ठा ॥५१॥ आयरिसे नियवयणं पलोयमाणा गवक्खमारूढा । जा चिट्ठइ ता साहू तत्थ तले कहवि संपत्तो ॥५२॥ तो तीए पमायपरव्वसाए अनिरूविऊण पक्खित्ता । पिक्का मुणिस्स सीसे, तो कुविओ जंपए साहू ॥५३॥ "जेणाऽहं पिक्काए, भरिओ सव्वंगियं पि सो पावो । पियविप्पओगदुक्खं मह वयणेणं समणुभवउ ॥५४॥ बहुविहदुक्खकिलंतो पभूयकालं तु मज्झ वयणेणं" । तं सोउं नम्मयसुंदरी वि सहस त्ति संभंता ॥५५॥ उत्तरिय गवक्खाओ, निदंती अप्पयं बहुपयारं । लूहित्ता वत्थेणं, पणमइ मुणिचलणजुयलम्मि ॥५६॥ परमेणं विणएणं, खामित्ता भणइ "जगजियाणंद ! । संसारियसोक्खाई, मा मह एवं पणासेहि ॥५७॥ धिद्धी ! अहं अणज्जा जीइ पमायाउ एरिसं काउं । बहुविहदुक्खसमुद्दे खित्तो अइभीसणे अप्पा ॥५८॥ अज्जं चिय सामि ! महं सव्वाइं पणट्ठयाइं सोक्खाई । अज्ज अहं संजाया पाविट्ठाणं पि पावयरी ॥५९॥ तुम्हारिसा महायस ! कुणंति दुहियाण उवरि कारुण्णं । ता करुणारससायर ! भयवं! अवणेहि मह सावं" ॥६०॥ इय विलवंती बहुहा भणिया उवओगपुव्वयं मुणिणा । "मा मा विलवसु मुद्धे ! एवं अइदुक्खसंतत्ता ॥६१॥
१. ला. मम ॥

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