Book Title: Muktidoot Author(s): Virendrakumar Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 5
________________ चाईस वर्ष तक मविच्छेद की सहस्रों रातों में वेदना की अखण्ड दीपशिखा-सी तुम जलती रहीं?" बिलखकर पहुँचा अपनी प्रेयसी की गोद में-जैसे भटका हुआ शिशु मों की गोद में पहुँचे। यही तो है उसकी मुक्ति, उसका त्राण! नारी की आकुल बाँहों की छाया में जाकर पुरुष आश्वस्त हुआ। और यहीं 'प्राण की अतलस्पर्शी आदिम गन्ध उसकी आत्मा को छू-छू गयी "कामना दी है तो सिद्धि भी दो। अपने बौधे बन्धन तुम्हीं खोलो, रानो! मेरे निर्वाण का पथ प्रकाशित कसे!" "मुक्ति की राह मैं क्या जानूँ? मैं तो नारी हूँ, और सदा बन्धन ही देती आधी हूँ। मुक्तिमार्ग के दावेदार और विधाता हैं पुरुष! वे आप अपनी जानें!" पर, देने में नारी ने कमी नहीं रखी; सम्पूर्ण उत्सर्ग के साथ नारी ने अपने अपको पुरुष के हाथों सौंप दिया-उसे संभाल लिया! इस प्रकार पुरुष उसी एक दिन की परित्यक्ता नारी की शरण में मुक्ति खोजता है। फिर वही नारी उसे महान् विजय-यात्रा पर भेजती है-जिस युद्ध से वह मृत्युंजयी जेता बनकर लौटता है। नारी के प्राणों का स्पन्दन पाकर ही पबनंजय अपना पुरुषार्थ प्राप्त करता है। जो सदा अपने 'अहं से परिचालित, किन्तु दूसरों के सहारे रहा वह अब स्वयं ही अहिंसक युद्ध की कल्पना करता है और उसकी शैली (Technique) निकालता है। यहाँ पवनंजय अपने चरम उत्कर्ष पर पहुंचा है-पर उसके पीछे है वही तपस्विनी सती अंजना। सती का यह प्रेम अन्त तक पुरुष के अहंकार को तोड़ता ही जाता है और अन्त में उस पुरुष के आदर्श को स्वयं बालकरूप में हनुमान को जन्म देकर, वह उस पुरुष को चरम मार्गदर्शन देती है। अंजना का जीवन सशक्त आदर्श का जीवन है। नारी के चरित्र की इतनी ऊँची और ऐसी अद्भत कल्पना शायद ही कहीं हो। अंजना शरत् बाबू के ऊँचे-से-ऊंचे स्त्री पात्र से ऊपर उठ गयी है। अब तक के मानव-इतिहास में नारी पर मुक्तिमार्ग की बाधा होने का जो कलंक चला आया है, इस उपन्यास में लेखक ने उस कलंक का मोचन किया है। अंजना का आत्मसमर्पण पुरुष के 'अहं' को गलाकर-उसके आत्म-उद्धार का मार्ग प्रशस्त करता है। अंजना का प्रेम निष्क्रिय आत्म-क्षय नहीं है, वह है एक अनवरत साधना; कहें कि 'अनासक्त योग' । इस प्रेम में पुरुष गौण है। और यदि वह विशिष्ट पुरुष है तो इसमें अटकाव नहीं, उसी के माध्यम से मुक्ति का द्वार खोज लेने का आग्रह है इस प्रेम में। अंजना का अटल आत्मविश्वास देखिए "यदि कापुरुष को परमपुरुष बना सकने का आत्मविश्वास हमारा टूटा नहीं ::12::Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 228