Book Title: Mokkha Purisattho Part 03 Author(s): Umeshmuni Publisher: Nandacharya Sahitya Samiti View full book textPage 6
________________ ( पाँच ) हेतुता, उनकी राग-द्वेष में परिणति, उससे बन्ध-वैविध्य, कषायों के प्रभेद और उनके फल का वर्णन करते हुए, उनकी भ्रम उत्पादकता के विषय में संकेत किया है । अन्त में उनसे सावधान रहने के विधान के साथ परिच्छेअ पूर्ण हुआ है। दूसरे परिच्छेअ में साधक के कषाय में पराधीन हो जाने के कारण उन्हें वश में करने में हतोत्साह का और गुरु के द्वारा उत्साह और धैर्य के प्रदान करने के वर्णन के पश्चात् कषायों को दुर्बल करने के आठ उपायों के विषय में चिन्तन किया है । यथा - १. कषाय-स्वरूप का चिन्तन २. अपने आपमें उनके अस्तित्व का निरीक्षण, ३. कषाय के द्वारा होनेवाली हानि का, ४. उनकी हेयता का, ५. अनुपादेयता का, ६. अनात्मता का चिन्तन करके तथारूप भावना का निर्माण करना, ७. कषायों में हार्दिक और बौद्धिक पकड़ का अन्वेषण करके उनका निवारण करना और ८. उनमें निरानंदता का अनुभव करना । यह परिच्छेअ काफी विस्तृत हो गया है । तीसरे परिच्छेअ में कषायों के वशीकरण के नव उपाय वर्णित हैं । यथा - १. कषाय के परिणामों को - भावों को देखना, २. कषायों के निमित्तों में रहते हुए या दूर टलकर उन्हें उदय में नहीं आने देना और उदय को विफल कर देना, ३. इच्छाओं का त्याग करना, ४. अदीन रहना, ५. जिनआज्ञा को याद रखना, ६. कषाय की हानि, जय आदि से संबन्धित उदाहरण, प्रसंग, कथा आदि याद रखना, ७. क्षमा आदि विरोधी भावों का अभ्यास करना, ८. गुरु-आज्ञा में हर्ष धारण करना और ९. कषायों के दुष्फल का चिन्तन करना | चौथे परिच्छेअ में कषाय-क्षय के सात उपाय वर्णित हैं । यथा - १. शम, २. संवेग, ३. निर्वेद, ४. धर्मश्रद्धा, ५. प्रलोकना, ६. निंदा और ७. गर्हा । इसके बाद इनके जय की भावना उल्लिखित है । क्षय के उपायों के अतिरिक्त अन्य विषय ज्यों का त्यों कहीं उपलब्ध होना संभव नहीं है । वस्तुत: यह सिद्धान्त-ग्रन्थ नहीं है । किन्तु सिद्धान्त को समझने और साधना को आत्मस्थ करने के लिये प्रस्तुत चिन्तन है, जिसमें जिन-प्रवचन का पारायण और अन्य ग्रन्थों का वाचन सहायक हुआ है - यहPage Navigation
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