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मंगलमन्त्र णमोकार · एक अनुचिन्तन
अथवा सातिशय पूजा के योग्य होने से अर्हन् सज्ञा प्राप्त होती है, क्योकि गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवल और निर्वाण इन पाँचो कल्याणकोमे देवों द्वारा की गयी पूजाएँ, देव, असुर, मनुष्योकी प्राप्त पूजाओसे अधिक हैं । अतः इन अतिशयोके योग्य होनेसे अर्हन सज्ञा प्राप्त होती है ।
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इन्द्रादिके द्वारा पूज्य, सिद्धगतिको प्राप्त होनेवाले अर्हन्त या रागद्वेप रूप शत्रुओको नाश करनेवाले अरिहन्त अथवा जिस प्रकार जला हुआ बीज उत्पन्न नही होता उसी प्रकार कर्म नष्ट हो जानेके कारण पुनर्जन्म से रहित अर्हन्तोंको नमस्कार किया है ।
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कर्मरूपी शत्रुओके नाश करनेसे तथा कर्मरूपी रज न होने से अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तसुख और अनन्तवीर्यरूप अनन्तचतुष्टय के प्राप्त होनेपर इन्द्रादिके द्वारा निर्मित पूजाको प्राप्त होनेवाले अर्हन् अथवा घातिया - ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय इन चारो कर्मोके नाश होनेसे अनन्तचतुष्टय विभूति जिनको प्राप्त हो गयी है, उन अर्हन्तोको नमस्कार किया गया है ।
जो ससारसे विरक्त होकर घर छोड़ मुनिधर्म स्वीकार कर लेते हैं तथा अपनी आत्माका स्वभाव साधन कर चार घातिया कर्मोक नाश द्वारा अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य इस अनन्त चतुष्टयको प्राप्त कर लेते हैं, वे अरहन्त है । ये अरहन्त अपने दिव्य ज्ञान -द्वारा संसारके समस्त पदार्थों की समस्त अवस्थाओको प्रत्येक रूपसे जानते हैं, अपने दिव्यदर्शन द्वारा समस्त पदार्थोंका सामान्य अवलोकन करते हैं । ये आकुलतारहित परम आनन्दका अनुभव करते है । क्षुवा, तृपा, भय, राग, द्वेप, मोह, चिन्ता, बुढापा, रोग, मरण, पसीना, खेद, अभिमान, रति, आश्चर्य, जन्म, नीद और शोक इन अठारह दोपोंसे रहित होने के कारण परम शान्त होते हैं, अतः वे देव कहलाते हैं इनका परमोदारिक शरीर उन सभी शास्त्र, वस्त्रादि अथवा अगविकारादिसे रहित होता है, जो काम, क्रोधादि निन्द्य भावोंके चिह्न हैं । इनके वचनोसे लोकमे धर्मतीर्थ की प्रवृत्ति