Book Title: Mangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Author(s): Nemichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 248
________________ 3 न २५२ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन अमोघ शस्त्र है, उच्चकोटिका भवन-रक्षक है, ज्योति है, बिन्दुः है, नाद है, तारा है, लव है, यही मात्रा भी है ॥३५॥ सोलस-परमखर धीय-बिन्दु-गठमो जगुलमो जोह (जोठ)। सुय-बारसंग-सायर-(बाहिर)-महत्य-पुष्वस्से-परमस्थो ॥३६॥ इस पंच नमस्कार चक्रमें आये हुए सोलह परमाक्षर, अरिहन्त, सिद्ध, आइरिय, उवज्झाय, साहू बीज एवं बिन्दुसे गमित हैं। जगतमें उत्तम हैं, ज्योतिस्वरूप हैं, द्वादशागरूप श्रुतसागरके महान् अर्थको धारण करनेवाले पूर्वोका परम रहस्य है ॥३६॥ नासेइ चोर-सावय-विसहर-जल-जलण-बंधण-सयाई चिंतिज्जतो रक्सस - रण - राय • भयाई. मांवेणे ॥३७॥ भावपूर्वक स्मरण किया गया यह मन्त्र चोर, हिंसक प्राणी, विषघर - सर्प, जल, अग्नि, बन्धन, राक्षस, युद्ध और राज्यके भयका नाश करता है ।।३७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 246 247 248 249 250 251