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मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
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शान्तिमन्त्र, इष्टसिद्धि-अरिष्टनिवारकमन्त्र, विभिन्न मागलिक कृत्योंके अवसर - पर उपयोगमें आनेवाले मन्त्र, विवाह, यज्ञोपवीत आदि संस्कारोके अवसर - पर हवन-पूजन के लिए प्रयुक्त होनेवाले मन्त्र प्रभृति समस्त मन्त्र णमोकार महामन्त्रसे प्रादुर्भूत हुए हैं। इस महामन्त्रको ध्वनियोके सयोग, वियोग, विश्लेषण और सश्लेषण के द्वारा ही मन्त्रशास्त्रको उत्पत्ति हुई है । प्रवचनसारोद्वारके वृत्तिकारने बताया है
सर्वमन्त्ररखानामुपस्याक्रस्य प्रथमस्य कल्पितपदार्थ करणैककल्पgher विषविषधरशाकिनी डाकिनी या किन्यादिनिग्रह निरवग्रह स्वभावस्य सकलजगद्वशीकरणाकृष्टया द्यव्यभिचारप्रौढ प्रभावस्य चतुर्दशपूर्वाणां सारभूतस्य पञ्चपरमेष्टिनमस्कारस्य महिमात्यद्भुतं वरीवर्तते, त्रिजगत्याकालमिति निष्प्रतिपक्षमेतत्सर्वसमय विदाम् |
अर्थात् - यह णमोकार मन्त्र सभी मन्त्रोकी उत्पत्ति के लिए समुद्रके समान है । जिस प्रकार समुद्रसे अनेक मूल्यवान् रत्न उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकार इस महामन्त्र से अनेक उपयोगी और शक्तिशाली मन्त्र उत्पन्न हुए हैं । यह मन्त्र कल्पवृक्ष है, इसकी आराधनासे सभी प्रकारकी कामनाएँ पूर्ण हो जाती है । इस मन्त्रसे विष, सर्प, शाकिनी, डाकिनी, याकिनी, भूत, पिशाच आदि सब वशमें हो जाते हैं । यह मन्त्र ग्यारह अंग और चौदह पूर्वका सारभूत है | मन्त्रोंको आचार्योंने वश्य, आकर्षण आदि नो भागोमें विभक्त किया है। ये नौ प्रकारके मन्त्र इसी महामन्त्रसे निष्पन्न हैं, क्योकि उन मन्त्रोंके रूप इस मन्त्रोक्त वर्णों या ध्वनियोंसे ही निष्पन्न हैं । मन्त्रोके प्राण बीजाक्षर तो इसी मन्त्रसे निसृत है तथा मन्त्रोंका विकास और निकास इसी महासमुद्रसे हुआ है । जिस प्रकार गंगा, मिन्धु आदि नदियाँ पद्महदादिमे निकलकर समुद्रोमें मिल जाती है, उसी प्रकार सभी मन्त्र इसी महामन्यसे निकलकर इसी महामन्त्र के तत्त्वोंमे मिश्रित हैं ।
जिनकी तिसूरिने अपने नमस्कारस्तवके पृष्पिकावाक्यमे बताया है षि इस महामन्त्रमें समस्त मन्त्रशास्त्र उसी प्रकार निवास करता है, जि