Book Title: Mangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Author(s): Nemichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 186
________________ १९० मंगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन कोशलके कारण उसके साथी भी इससे ईर्ष्या रखते थे। एक दिन वह जंगल में गया था, वहाँ एक मदोन्मत्त वनगज सामने आता हुआ दिखाई दिया। प्रमातिकुमारने धैर्यपूर्वक णमोकारमन्त्रका स्मरण किया और हाथीको पकड लिया। इस कार्य से उसके साथियोपर अच्छा प्रभाव पडा और वे अपना वैर-विरोध भूलकर उससे प्रेम करने लगे। ___एक दिन कौशाम्बी नगरीसे दूत माया और उसने कहा कि दन्ति बल राजापर एक माण्डलिक राजाने आक्रमण कर दिया है। शत्रुओंने कौशाम्बीके नगरको तोड दिया है। राजा दन्तिवल वीरतापूर्वक युद्ध कर रहा है, पर युद्धमे विजय प्राप्त करना कठिन है । प्रमातिकुमारने मालव नरेशसे भी आज्ञा नही ली और चन्द्रलेखाके साथ रातमे णमोकारमन्त्रका जाप करता हुआ चला । मार्गमें चोर-सरदारसे मुठभेड़ भी हुई, पर उसे परास्त कर कौशाम्बी चला आया और वीरतापूर्वक युद्ध करने लगा। राजा दन्तिवलने जब देखा कि कोई उसकी सहायता कर रहा है, तो उसके आश्चर्यका ठिकाना नही रहा । प्रमातिकुमारने वीरतापूर्वक युद्ध किया जिससे शत्रुके पैर उखड गये और वह मैदान छोड़कर भाग गया । राजा दन्तिवलपुत्रको प्राप्त कर बहुत प्रसन्न हुए। चन्द्रलेखाने ससुरकी चरणधूलि सिरपर धारण की । दन्ति वलको वृद्धावस्था जानेसे संसारसे विरक्ति हो गयी। फिर उन्होने प्रमातिकुमारको राज्यभार दे दिया । प्रमातिकुमार न्याय-नीतिपूर्वक प्रजाका पालन करने लगा । एक दिन वनमें मुनिराजका आगमन सुनकर वह अमात्य, सामन्त और महाजनोसहित मुनिराजके दर्शन करनेको गया । उसने भक्तिभावपूर्वक मुनिराजकी वन्दना की और उनका धर्मोपदेश सुनकर ससारसे विरक्त रहने लगा। कुछ दिनोके उपरान्न एक दिन अपने श्वेत केश देखकर उसे संसारसे बहुत घृणा हुई और अपने पुत्र विमलकीतिको बुलाकर राज्यभार सौंप दिया और स्वय दिगम्बर दीक्षा ग्रहण कर घोर तपश्चरण करने लगा। मरणकाल निकट जानकर प्रमातिकुमारने सल्लेखनामरण घारण किया तथा णमोकार मन्त्रका

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