Book Title: Mangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Author(s): Nemichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 228
________________ SCHEM .AL - " ' २३२ मगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन कुमानुष ३८ गोत्र , कुभोग भूमिके रहनेवाले ऐसे गोत्र कर्मके उदयसे मनुष्यको मनुष्य जिनके शरीरको आकृति उच्च आचरण या नीच आचरणविभिन्न और विचित्र प्रकारको हो। वाले कुल में जन्म लेना पडता है। क्रियाकेन्द्र ७८ घातियाकर्म क्रियावाही नाडियाँ मस्तिष्क- आत्माके गुणोंका घात करने के जिस स्थानमे केन्द्रित होती हैं, वाले कर्म घातिया कहलाते हैं। उसका नाम क्रिया केन्द्र है। चतुर्विध संघ ५७ क्रियात्मक ७८ मुनि, अजिका, श्रावक और क्रियात्मक वह मनोवृत्ति है श्राविका इन चारोके संघको जिसके द्वारा मानवके समस्त क्रिया. चतुर्विध संघ कहते हैं। .. कलापोंका संचालन हो । इसके दो चरित्र भंद हैं - जन्मजात और अजित । इच्छाशक्तिके कार्यका मानक्रियावाही ७४ सिक परिणाम चरित्र है। कुछ सुषुम्नामे स्थित क्रियावाही वे लोग मनुष्यके संस्कार-पुजको ही नाडियां हैं जो शरीरके बाहरी अंग- चरित्र मानते हैं। कुछ मनोवैज्ञामें होनेवाली किसी भी प्रकारको निक चरित्रको आदतोंका पुज उत्तेजनाकी सूचना देती हैं। बताते हैं। गुणस्थान ३२ चेतन मन ___मोह और योगके निमित्तसे चेतन मन, मनका वह भाग होनेवाले आत्माके परिणामविशेष है जिसमें मनकी समस्त ज्ञात गुणस्थान है। क्रियाएँ चला करती हैं। .. गुप्सि ४५ चौदह पूर्व ४४. मन, वचन और कायका पूर्ण भगवान महावीरके , पहले निग्रह करना गुप्ति है। आगमिक परम्परामें जो अन्य वर्त .

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