Book Title: Mangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Author(s): Nemichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 235
________________ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन २३९ रूप रत्न-नय ४६ कि नितम्बके सामने जमीनपर टिक सम्यग्दर्शन, सम्यक् ज्ञान और जाये और सीनेका बायां भाग सम्यक् चारित्रको रत्नत्रय कहते हैं। ऊपर उठे हुए घुटनेपर अडा रहे। ८७ इसके बाद दाहिनी ओर थोडा यन्त्रकी ध्वनियोका सन्निवेश झुकते हुए बायां नितम्ब कुछ ऊपर रूप कहलाता है। उठाइए, दाहिना हाथ दाहिनी रौद्र-ध्यान १०५ जांधके पास जमीनपर टिकाकर हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील झुके हुए घडको सहारा दीजिए और परिग्रह रूप परिणतिके और बायें हाथसे वायें पैरको चिन्तनसे आत्माको कषाय युक्त टखनेके पास पकड लीजिए। करना रोद्र-ध्यान है। वश्याकर्षण - ८८ लेश्या १३० जिन मन्त्रों के द्वारा किसीको कषायके उदयसे अनुरजित वश या आकृष्ट किया जा सके वे योग प्रवृत्तिको लेश्या कहते हैं। मन्त्र वश्याकर्षण कहलाते हैं । लोकैषणा १७१ वाचक यशकी कामना या ससारमे वाचक विधिमे जाप करते किसी भी प्रकार प्रसिद्धि प्राप्त समय मुंहसे शब्दोका उच्चारण करनेकी इच्छा करना लोकेषणा है। किया जाता है। वचनशुद्धि ७२ वासना वचन व्यवहारमें किसी भी मानव मनमें अनेक क्रियात्मक प्रकारके विकारको स्थान न देना मनोवृत्तियां हैं। कुछ क्रियात्मक वचन-शुद्धि है। मनोवृत्तियों प्रकाशित होती. हैं वज्रासन १०५ अर्थात् चेतनाको उन का ज्ञान रहता दोनो पैर सीधे फैलाकर बैठ है और कुछ अप्रकाशित रहती हैं। जाइए और वायां पैर घुटनेसे मोड- अप्रकाशित इच्छाओका ही नाम फर जांघसे इस प्रकार मिलाइए वासना है।

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