Book Title: Mangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Author(s): Nemichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 238
________________ २४२ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अर्नुचिन्तन । सत्य है। इसमे अहिंसा प्रवृत्तिका संक्रमण : रहना अत्यावश्यक है। एक' कर्मको दूसरे सजातीरे सत्त्व १३० कर्म रूप हो जानेको संक्रमण कर कर्मों प्रकृतियोकी सत्ताका कहते हैं। नाम सत्त्व है। सत्त्व प्रकृतियाँ संग्रह १४८ मानी गयी हैं। अपनी-अपनी जातिके अनुसी सप्त व्यसन १७५ वस्तुओंका या उनको पर्यायोक बुरी आदतका नाम व्यसन है। एक रूपसे संग्रह करनेवाले का ये सात होते हैं। तात्पर्य यह है और वचनको संग्रह नय कहते हैं कि जुआ, चोरी आदि सात प्रकार- संवेग की बुरी आदतें सप्त व्यसन कहा संवेग एक चेतन अनुभूति । लाती हैं। जिसमे कई प्रकारकी शारीरिखें समय शुद्धि १ क्रियाएं शामिल रहती हैं। प्रात, मध्याह्न और सन्ध्या संयम समय नियमित रूपसे किसी मन्त्र- इन्द्रिय निग्रहके साथ अहिंसा का जाप करना समय शुद्धि है। त्मक प्रवृत्तिको अपनान इसमे समयका निश्चित रहना और संयम है। निराकुल होना आवश्यक है। संवेदन सममिरूढ़ १२० चैतन्य मनका सर्वप्रथम और लिंग मादिका भेद न होनेपर सरल ज्ञान संवेदन है । “ सवेदन भी शब्दभेदसे अर्थका भेद मानने इन्द्रियोंके वाह्य पदार्थके स्पर्शसे वाला समभिरून नय है। होता है। संकल्प ८५ समाधि किसी कार्यके करनेकी प्रतिज्ञा- ध्यानकी, -घरम सीमाको का नाम संकल्प है। समाधि कहते हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251