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मंगलमन्त्र णमोकार · एक अनुचिन्तन
जस्स वर-धम्मचक्कं, दिणयर-विवं व भासुरछायं । तेएण पज्जलंतं, गच्छद पुरभो जिणिंदस्स ॥१२॥ आयासं पायालं, सयलं महिमंडलं पयास । मिच्छत्त-मोह-तिमिरं, हरेइ त्ति इहं पि लोयाणं ॥१३॥ नमस्कार करनेके लिए झुके हुए सुरासुरेश्वरोके मुकुटोसे गिरते हुए पुष्पो-द्वारा पूजित चरणवाले अर्हन्त महावीर वर्षमानके आगे सूर्य-विम्बके समान देदीप्यमान और तेजसे उद्भासित धर्मचक्र चलता है। यह धर्मचक्र आकाश, पाताल और समस्त पृथ्वीमण्डलको प्रकाशित करता हुमा यहाँके प्राणियोके मिथ्यात्वरूपी अन्धकारका हरण करे ॥११-१३।।
सयलंमि वि जियलोए, चिंतियमित्तो करेइ सत्ताणं ।
रक्खं रक्खस-हाइणि - पिसाय गह-जस्ख भूयाणं ॥१४॥ यह णमोकार मन्त्र चिन्तनमानसे समस्त जीवलोकमे राक्षस, डाकिनी, पिशाच, ग्रह, यक्ष और भूत-प्रेतोंसे प्राणियोंकी रक्षा करता है ।।१४।।
लहइ विवाए वाए, ववहारे मावभो सरंतो य ।
जूए रणे व रायंगणे य विजयं विसुद्धप्पा |१५|| भावपूर्वक इसका स्मरण करते हुए शुद्धात्मा वाद-विवाद, व्यवहार, जुआ, युद्ध एव राजदरबारमे विजय प्राप्त करता है ।।१।।
पच्चूस-पभोसेसुं, सययं मन्त्रो जणो सुह-ज्झाणो ।
एवं झाएमाणे, मुक्खं पइ साहगो होइ ॥१६ शुभ ध्यानसे युक्त भव्य जीव इस णमोकार मन्त्रका प्रात तथा सायकाल निरन्तर ध्यान करनेसे मोक्ष साधक बनता है ।।१६।।
वेयाल - रुह-दाणच • नरिंद - कोह ढि-रेवईणं च ।
सम्वेसि सत्ताण, पुरिसो अपराजिओ होइ ॥१॥ इस मन्त्रका स्मरण करनेवाला पुरुष वेताल, रुद्र, राक्षस, राजा, कुष्माण्डी, रेवती तथा सम्पूर्ण प्राणियोसे अपराजित होता है ॥१७॥