Book Title: Mangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Author(s): Nemichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 230
________________ २३४ दव्यशुद्धि १२४ मगलमन्त्र णमोकार · एक अनुचिन्तन द्रव्य लिंगी ५७ विपाकविचय और सस्थानविषय ___ मुनिवेशी, किन्तु सम्यक्त्व- रूप चिन्तनको धर्मध्यान कहते हैं। हीन जैन मुनि द्रयलिंगी कहलाता ध्यान १०२ ध्यान देना एक ऐसी प्रक्रिया " है जो व्यक्तिको वातावरणमे उपपायकी अन्तरग शुद्धिको द्रव्य- स्थित अनेक उत्तेजनाओंमे-से उसकी शुद्धि कहा गया है। एमोकार यभिरुचि एव मनोवृत्तिके अनुकूल मन्त्रका जाप करनेके लिए बतायी किसी एक उत्तेजनाको चुन लेने गयी आठ प्रकारको शुद्धियोंमे यह तथा उसके प्रति प्रतिक्रिया प्रकट पहली शुद्धि है। करनेको वाध्य करती है। द्रव्य संकोच धारणा शरीरको नम्रीभूत बनाना ___ जिसका ध्यान किया जाये, द्रव्य सकोच है। उस विषयमे निश्चल रूपसे मनको द्रव्य ससार जशनमा लगा दना धारणा है । के अस्तित्वको द्रव्य संसार कहते हैं। नय। द्वादशाग ७१ वस्तुका आशिक ज्ञान नय अक्षरात्मक श्रतज्ञानके आचा- कहलाता है। राग सूत्रकृताग आदि द्वादश भेदो- नष्ट १४८ को द्वादशाग कहते हैं। सख्याको रखकर पदका प्रमाण ४५ निकालना नष्ट है। __ वस्तुके स्वभावका नाम धर्म नाम कर्म । ४३ है । यह धर्म रत्नत्रय रूप, उत्तम नाम कर्मके उदयसे शरीरकी क्षमादि रूप एव अहिंसामय है। आकृतियाँ उत्पन्न होती हैं । अर्थात् धमध्यान १०५ शरीर निर्माणका कार्य इसी कर्मके आज्ञाविचय, अपायविचय, १०२ ३२०

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