Book Title: Mangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Author(s): Nemichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 211
________________ मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन २१५ जीवनको उसीके अनुकूल बनाना तथा अनात्मिक भावोको छोड आत्मिक भावोंको ग्रहण करना। अतएव जैन सस्कृतिमे जीवनादर्श, धार्मिक आदर्श, सामाजिक आदर्श, पारिवारिक आदर्श, आस्था और विश्वासपरम्पराएँ. साहित्यकला मादि चीजें अन्तर्भूत हैं । यो तो जैन सस्कृतिमे वे ही चीजें आती हैं, जो आत्मशोधनमे सहायक होती हैं, जिनसे रत्नत्रय गुणका विकास होता है। यही कारण है कि जैन संस्कृति अहिंसा, परिग्रह, त्याग, सयम, तप आदिपर जोर देती चली आ रही है। आत्मसमत्व और वीतरागत्वकी भावनासे कोई भी प्राणो धर्मकी शीतल छायामे बैठ सकता है । वह अपना आत्मिक विकास कर अहिंसाकी प्रतिष्ठा कर सकता है । यो तो जैन संस्कृतिके अनेक तत्त्व हैं, पर णमोकार महामन्त्र ऐसा तत्त्व है, जिसके स्वरूपका परिज्ञान हो जानेपर इस सस्कृतिका रहस्य अवगत करनेमे अत्यन्त सरलता होती है। णमो. कारमन्त्रमे रत्नत्रयगुण विशिष्ट शुद्ध मात्माको नमस्कार किया है। जिन आत्माओंने अहिंसाको अपने जीवनमे पूर्णतः उतार लिया है, जिनकी सभी क्रियाएँ अहिंसक हैं, ये मात्माएं जैन संस्कृतिकी साक्षात् प्रतिमाएं हैं । उनके नमस्कारसे आदर्श जीवनकी प्राप्ति होती है । पंच महाव्रतीका पालन करनेवाले मात्मस्वरूपके ज्ञाता-द्रष्टा परमेष्ठियोका वेष संसारके सभी वेषोंसे परे है । लाल-पीले तरह-तरहके वस्त्र धारण करना, डण्डा लाठी आदि रखना, जटाएं धारण करना, शरीरमे भ मूत लगाना आदि अनेक प्रकारके वेप हैं, किन्तु नग्नता वेषातीत है, इसमे किसी भी प्रकारके वेपको नहीं अपनाया गया है। पचपरमेष्ठी निम्रन्य रहकर सत्यका मार्ग अन्वेषण करते हैं। उनकी समस्त क्रियाएँ - मन, वचन और शरीरकी क्रियाएं पूर्ण अहिंसक होती हैं। राग-द्वेष, जिनके कारण जीवनमे हिंसाका प्रवेश होता है, इन आत्माओंमे नही पाये जाते । विकार दूर होनेसे शरीरपर इनका इतना अधिकार हो जाता है कि पूर्ण अहिंसक हो जानेपर भोजनकी भी इन्हे आवश्यकता नहीं रहती।

Loading...

Page Navigation
1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251