Book Title: Mangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Author(s): Nemichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 221
________________ मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन २२५ ५ ९. णमोकार मन्त्रकी मात्राओ स्वर, व्यजन और विशेष पदके योगमे सामान्य अक्षरोका अन्योन्य गुणनफल जोड देनेसे कुल कर्मप्रकृतियोकी सख्या होती है । यथा इस मन्त्रकी ५८ मात्राएँ, ३४ स्वर, ३० व्यजन, ११ विशेषपद, ३५ सामान्य अक्षर और सामान्य अक्षरोका अन्योन्य गुणनफल = ५X३ = १५, अतः ५८ + ३४ + ३० + ११ + १५ = १४८ कर्म प्रकृतियाँ | १० मात्राओ, स्वर एवं व्यजनोकी संख्याका योग कर देनेपर उदय योग्य कर्म प्रकृतियां आती है; यथा ५८ + ३० + ३४ = १२२ उदययोग्य प्रकृति संख्या । ११. मन्त्रकी स्वर और व्यंजन सख्याका पृथक्त्वके अनुसार अन्योन्य गुणा करनेसे वन्व योग्य प्रकृतियोकी सख्या आती है । यथा व्यंजन ३०, स्वर ३४, अन्योन्य क्रम गुणनफल ३० = ०, इस क्रममे शून्य दमका मान देता है; ४ x ३ = १२ः.१२× १० = १२० बन्ध योग्य प्रकृतियाँ | १२ णमोकार मन्त्रकी व्यजन सख्याका इकाई, दहाई क्रमसे योग करनेपर रत्नत्रयकी सख्या आती है । यथा ३० व्यजन सख्या है, ० + ३ = ३ रत्नत्रय सख्या, द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, और काय गुप्ति अथवा मन, वचन और काय योग । १३. स्वर और व्यजन सख्याका योग कर इकाई, दहाई अक क्रमसे गुणा करनेपर तीर्थंकर संख्या आती है । यथा ३० + ३४ = ६४, अन्योन्य क्रम करनेपर ४X६ = २४ = तीर्थंकर सख्या । १४ स्वर संख्याको इकाई, दहाई क्रमसे गुणा करनेपर चक्रवर्तियोकी सख्या आती है । यथा ३४ स्वर, अन्योन्य क्रम करनेपर ४X३ = १२ चक्रवर्ती, द्वादश अनुप्रेक्षा, द्वादश व्रत आदि । - १. इसी पुस्तकका ५० १३६ ।

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