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मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
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परमेष्ठीकी आत्माएँ इन प्रयोजनोको सिद्ध कर लेती हैं या इनकी सिद्धिके लिए प्रयत्नशील हैं। आत्मा अनादि, स्वतः सिद्ध, उपाधिहीन एव निर्दोष है । अस्त्र शस्त्रोसे इसका छेदन नही हो सकता, जलप्लावन से यह भीग नही सकता, आगसे जल नही सकता, पवनसे सूख नहीं सकता और धूपसे कभी निस्तेज नहीं हो सकता है । ज्ञान, दर्शन, सुख, वोर्य, सम्यक्त्व, अगुरुलघुत्व आदि आठ गुण इस आत्मा मे विद्यमान हैं । ये गुण इस आत्माके स्वभाव है, आत्मासे अलग नही हो सकते हैं। णमोकार मन्त्र मे प्रतिपादित पंचपरमेष्ठी उक्त गुणोको प्राप्त कर लेते हैं अथवा पचपरमेष्ठियोंमे से जिन्होने उन गुणोको प्राप्त नहीं भी किया है वे प्राप्त करने का उपक्रम करते हैं । इस स्थूल शरीर के द्वारा वे अपनी आत्मसाधना मे सर्वदा संलग्न रहते हैं ।
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ये अहिंसा के साथ तप और त्यागकी भावनाका अनिवार्य रूप से पालन करते हैं, जिससे राग-द्वेष आदि मलिन वृत्तियोपर सहजमे विजय पाते हैं । इनके आचार मोर विचार दोनो शुद्ध होते हैं । माचार की शुद्धिके कारण ये पशु, पक्षी, मनुष्य, कीट, पतंग, चीटी आदि त्रस जीवोकी रक्षाके साथ पार्थिव, जलीय, आग्नेय, वायवीय आदि सूक्ष्मातिसूक्ष्म प्राणियो तककी हिंसासे आत्मौपम्यकी भावना द्वारा पूर्णतया निवृत्त रहते हैं । विचार-शुद्धि होने से इनकी साम्यदृष्टि रहती है, पक्षपात, राग, द्वेष, सकीर्णता इनके पास फटकने भी नही पाती । प्रमाण और नयवादके द्वारा अपने विचारोका परिष्कार कर ये सत्य दृष्टिको प्राप्त करते हैं ।
णमोकार मन्त्र में निरूपित आत्माओका एकमात्र उद्देश्य मानवताका कल्याण करना है | ये पांचो ही प्राणीमात्रके लिए परम उपकारी हैं । अपने जीवन के त्याग, तपश्चरण, तत्त्वज्ञान और आचरण द्वारा समस्त प्राणियोका हित साधन करते हैं। उनकी कोई भी क्रिया, किसी भी प्राणीके लिए बाधक नही हो सकती है । ये स्वय ससार भ्रमण जन्म, मरणके चक्रसे छुटकारा प्राप्त करते हैं तथा अन्य जीवो को भी अपने शारीरिक या
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