Book Title: Mangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Author(s): Nemichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 197
________________ मंगलमन्त्र णमोकार ' एक अनुचिन्तन २०१ जप करने को कहा । समाधिमरण भी उसने धारण किया और आरम्भपरिग्रहका त्याग कर इस महामन्त्र के चिन्तनमे लीन होकर प्रारण त्याग दिये; जिससे वह ब्रह्मलोकमे दस सागरकी आयुवाला एक भवावतारी देव हुआ | भीलनीके जीव राजकुमारीने भी णमोकार महामन्त्रके प्रभावसे स्वर्गमे जन्म ग्रहण किया । क्षत्रचूडामडिमे णमोकार मन्त्रकी महत्त्वसूचक एक सुन्दर कथा आयी है । इस कथामे बताया गया है कि एक बार कुछ ब्राह्मण मिलकर कही पर यज्ञ कर रहे थे कि एक कुत्तेने आकर उनकी हवन सामग्री जूठी कर दी । ब्राह्मणोने क्रुद्ध हो उस कुत्तेको इतना मारा कि वह कण्ठगत प्राण हो गया । सयोगसे महाराज सत्येन्द्रके पुत्र जीवन्धरकुमार उधर आ निकले, उन्होने कुत्तेको मरते हुए देखकर उसे णमोकार मन्त्र सुनाया। मन्त्रके प्रभावसे कुत्ता मरकर यक्ष जातिका इन्द्र हुआ । अवविज्ञानसे अपने उपकारीका स्मरण कर वह कुमार जीवन्धरके पास आया और नाना प्रकारसे उनकी स्तुति प्रशंसा कर उन्हे इच्छित रूप बनाने और गानेकी विद्या देकर अपने स्थानपर चला गया । इस आख्यानसे स्पष्ट है कि कुत्ता भी इस महामन्त्र के प्रभावसे देवेन्द्र हो सकता है, फिर मनुष्य जातिकी बात ही क्या ? इस प्रकार श्वेताम्बर कथासाहित्यमे ऐसी अनेक कथाएं आयी हैं, जिनमे इस महामन्त्र के ध्यान, स्मरण, उच्चारण और जपका अद्भुत फल बताया गया है । जो व्यक्ति भावसहित इस मन्त्रका फळ- प्राप्ति के अनुष्ठान करता है, वह अवश्य अपना कल्याण कर आधुनिक उदाहरण लेता है । सासारिक समस्त विभूतियाँ उसके चरणोमे लोटती हैं । वर्तमानमे भी श्रद्धापूर्वक णमोकार मन्त्र के जापसे अनेक व्यक्तियोंको अलोकिक सिद्धि प्राप्त हुई है । आनेवाली आपत्तियाँ इस महामन्त्रकी कृपा से दूर हो गयी हैं । यहाँ दो-चार उदाहरण दिये जाते हैं । इस मन्त्र के दृढ श्रद्धानसे

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