Book Title: Mangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Author(s): Nemichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 204
________________ २०८ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन आचार्योने इसी कारण बताया है कि "मं भवात् ससारात् गालयति अप- . नयतीति मंगलम्" अर्थात् यह संसार चक्रसे छुडाकर जीवोको निर्वाण देता है और इसके नित्य मनन चिन्तन और ध्यानसे सभी प्रकारके कल्याणोकी प्राप्ति होती है । इस पचम कालमें संसार त्रस्त जीवोको सुन्दर सुशीतल छाया प्रदान करनेवाला कल्पवृक्ष यह महामन्त्र ही है। दुर्गति, पाप और दुराचरणसे पृथक् सद्गति, पुण्य और सदाचारके मार्गमे यह लगानेवाला है । इस महामन्त्रके जपसे सभी प्रकारको माघि व्याधियां दूर हो जाती है और सुख-सम्पत्तिकी वृद्धि होती है । अत. अहितरूनी पाप या अधर्मका ध्वस कर यह कल्याणरूपी धर्मके मार्गमे लगाता है । बडीसे बडी विपत्तिका नाश णमोकार मन्त्रके प्रभावसे हो जाता है। द्रौपदीका चीर बढना, अजन-चोरके कष्टका दूर होना, सेठ सुदर्शनका शूलीसे उत्तरना, सीताके लिए अग्निकुण्डका जलकुण्ड वनना, श्रीपालके कुप्ठ रोगका दूर होना, अजना सतीके सतीत्वकी रक्षाका होना, सेठके घरके दारिद्रयका नष्ट होना आदि समस्त कार्य णमोकार मन्त्र और पचपरमेष्ठीको भक्तिके द्वारा ही सम्पन्न हुए हैं । इस महामन्त्रके एक-एक पदका जाप करनेमे नवग्रहोकी बाधा शान्त होती है । णमोकारादि मन्त्रसग्रहमें बताया गया है कि 'ओं णमो सिद्धाण के दस हजार जापसे सूर्यग्रहकी पीडा, 'भों णमो अरिहंताण' के दस हजार जापसे चन्द्रग्रहकी पीडा, 'ओ णमो सिद्धाण के दस हजार जापसे मगलग्रहकी पीड़ा, 'ओं णमो उवज्झायाणं'के दस हजार जापसे बुधग्रहकी पीडा, ओ णमो आइरियाण' के दस हजारजापसे गुरुग्रहकी पीटा, 'ओं णमो अरिहताण' के दस हजार जापसे शुक्रग्रहकी पीडा और णमो लोए सबसाहण' के दस हजार जापसे शनिग्रहकी पीडा दूर होती है। राहुकी पीडाकी शान्तिके लिए समस्त णमोकार मन्त्र का जाप 'मो' छोडकर अथवा 'भों ही णमा अरिहंताणं' मन्त्रका ग्यारह हजार जाप तथा केतुकी पीडाकी शान्तिक लिए 'ओ' जोडकर समस्त णमोकार मन्त्र का जाप अथवा 'भों ही णमो

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