Book Title: Mangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Author(s): Nemichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
मगलमन्त्र णमोकार ' एक अनुचिन्तन
१७५
नाश करनेमे समर्थ इस महामन्त्रकी आराधना अवश्य करनी चाहिए । अमितगति आचार्य ने कहा है
deale
सप्तविंशतिरुच्छ्वासाः संसारोन्मूलनक्षमे ।
सन्ति पञ्चनमस्कारे नवधा चिन्तिते सति ॥
इस प्रकार श्रावक अन्तिम समयमे णमोकार मन्त्रकी साधना कर उत्तम गतिकी प्राप्ति करता है और जन्म-जन्मान्तर के पापोका विनाश होता है । अन्तिम समयमे ध्यान किया गया मन्त्र अत्यन्न कल्याणकारी होता है ।
व्रतोका पालन आत्मकल्याण और जीवन सस्कारके लिए होता है । व्रतोकी विधिका वर्णन कई श्रावकाचारोमे आया है । कर्मों की असख्यातगुणी निर्जरा करनेके लिए श्रावक व्रतोपवास करता है, जिससे उनकी आत्माके विकार शान्त
व्रतविधान और
णमोकार मन्त्र होते हैं और त्यागकी महत्ता जीवनमे आती है । सप्तव्यमनके त्यागके साथ, आठ मूलगुण, बारह व्रत ओर अन्तिम समयमे सल्लेखना धारण कर विशेष उपवासोके द्वारा श्रावक अपनी आत्माको शुद्ध करनेका आभाम करता है । व्रत प्रधान रूपसे नौ प्रकारके होते हैं - सावधि, निरवधि, दैवसिक, नैशिक, मासावधिक, वार्षिक, काम्य, अकाम्य और उत्तमार्थं । सावधि व्रत दो प्रकारके हैं - तिथिकी अवधिसे किये जानेवाले और दिनोंकी अवधिसे किये जानेवाले । तिथिकी अवधि से किये जानेवाले सुखचिन्तामणि, पर्चाविशतिभावना, द्वात्रिंशत् भावना, सम्यक्त्वपचविशतिभावना और णमोकारपचत्रिंशत् भावना आदि हैं। दिनोकी अवधिसे किये जानेवाले व्रतोमे दुखहरणव्रत, धर्मचक्रव्रत, जिनगुणसम्पत्ति, सुखसम्पत्ति, शीलकल्याणक, श्रुतिकल्याणक और चकल्याणक आदि । निरवधिमे कवलचन्द्रायण तपोजल, जिन मुखावलोकन, मुक्तावली, द्विकावली और एकावली आदि हैं । दैवसिक व्रतोंमे दशलक्षण, पुष्पांजलि, रत्नमय आदि हैं। आकाशपचमी नैशिक व्रत है। पोडशकारण, मेघमाला नादि मासिक है। जो व्रत किती कामनाकी पूर्ति के लिए किये जाते हैं,

Page Navigation
1 ... 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251