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मगलमन्त्र णमोकार ' एक अनुचिन्तन
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नाश करनेमे समर्थ इस महामन्त्रकी आराधना अवश्य करनी चाहिए । अमितगति आचार्य ने कहा है
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सप्तविंशतिरुच्छ्वासाः संसारोन्मूलनक्षमे ।
सन्ति पञ्चनमस्कारे नवधा चिन्तिते सति ॥
इस प्रकार श्रावक अन्तिम समयमे णमोकार मन्त्रकी साधना कर उत्तम गतिकी प्राप्ति करता है और जन्म-जन्मान्तर के पापोका विनाश होता है । अन्तिम समयमे ध्यान किया गया मन्त्र अत्यन्न कल्याणकारी होता है ।
व्रतोका पालन आत्मकल्याण और जीवन सस्कारके लिए होता है । व्रतोकी विधिका वर्णन कई श्रावकाचारोमे आया है । कर्मों की असख्यातगुणी निर्जरा करनेके लिए श्रावक व्रतोपवास करता है, जिससे उनकी आत्माके विकार शान्त
व्रतविधान और
णमोकार मन्त्र होते हैं और त्यागकी महत्ता जीवनमे आती है । सप्तव्यमनके त्यागके साथ, आठ मूलगुण, बारह व्रत ओर अन्तिम समयमे सल्लेखना धारण कर विशेष उपवासोके द्वारा श्रावक अपनी आत्माको शुद्ध करनेका आभाम करता है । व्रत प्रधान रूपसे नौ प्रकारके होते हैं - सावधि, निरवधि, दैवसिक, नैशिक, मासावधिक, वार्षिक, काम्य, अकाम्य और उत्तमार्थं । सावधि व्रत दो प्रकारके हैं - तिथिकी अवधिसे किये जानेवाले और दिनोंकी अवधिसे किये जानेवाले । तिथिकी अवधि से किये जानेवाले सुखचिन्तामणि, पर्चाविशतिभावना, द्वात्रिंशत् भावना, सम्यक्त्वपचविशतिभावना और णमोकारपचत्रिंशत् भावना आदि हैं। दिनोकी अवधिसे किये जानेवाले व्रतोमे दुखहरणव्रत, धर्मचक्रव्रत, जिनगुणसम्पत्ति, सुखसम्पत्ति, शीलकल्याणक, श्रुतिकल्याणक और चकल्याणक आदि । निरवधिमे कवलचन्द्रायण तपोजल, जिन मुखावलोकन, मुक्तावली, द्विकावली और एकावली आदि हैं । दैवसिक व्रतोंमे दशलक्षण, पुष्पांजलि, रत्नमय आदि हैं। आकाशपचमी नैशिक व्रत है। पोडशकारण, मेघमाला नादि मासिक है। जो व्रत किती कामनाकी पूर्ति के लिए किये जाते हैं,