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१७६ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन वे काम्य और जो निष्कामरूपसे किये जाते हैं, वे निष्काम कहलाते हैं। काम्य व्रतोमे संकटहरण, दुःखहरण, धनदकलश आदि व्रतोकी गणना की जाती है। उत्तम वनोमें कर्मचूर, कर्मनिर्जरा, महासर्वतोभद्र आदि हैं। अकाम्य व्रतोंमे मेरुपक्ति आदिकी गणना है । इन समस्त व्रतोके विधानमें जाप्य मन्त्रीको आवश्यकता होती है। यों तो णमोकार मन्त्रके नामपर णमोकारपत्रिंशत्भावना व्रत भी है । इस नतका वर्णन करते हुए बताया गया है कि इस व्रतका पालन करनेसे अनेक प्रकारके ऐश्वर्योंके साथ मोक्ष-सुख प्राप्त होता है। कहा गया है -
अपराजित है मन्त्र णमोकार, अक्षर तहँ पैंतीस विचार । कर उपचास वरण परिमाण, सोहं सात करो बुधिमान । पुनि चौदा चौदशिवत साँच, पॉचे तिथि के प्रोषध पाँच । नवमी नब करिये मवि सात, सब प्रोषध पैंतीस गणात ।। पैंतीसी णवकार जु येह, जाप्यमन्त्र नवकार जयेह । मन वच तन नरनारी करे, सुरनर सुख लह शिवतिय वरे ।।
अर्थात् - यह णमोकारपैतीसी व्रत एक वर्ष छह महीनेमे समाप्त होता है। इस डेढ वर्षको अवधिमे केवल ३५ दिन व्रतके होते हैं। व्रतारम्भ करनेकी यह विधि है -[१] प्रथम आषाढ शुक्ला सप्तमीका उपवास करे, फिर श्रावण महीनेकी दोनों सप्तमी, भाद्रपद महीनेकी दोनो सप्तमी और आश्विन महीनेकी दो सप्तमी इस प्रकार कुल सात सप्तमियोके उपवास करे। [२] पश्चात् कात्तिक कृष्ण पचमीसे पौष कृष्ण पचमी तक अर्थात् कुल पाँच पचमियोके उपवास करे। [३] तदनन्तर पौष कृष्ण चतुर्दशीसे चैत कृष्ण चतुर्दशी तक सात चतुर्दशियोके सात उपवास करे। [४]अनन्तर चैत्र शुक्ला चतुर्दशीसे आषाढ शुक्ला चतुर्दशी तक सात चतुर्दशियोंके सात उपवास करे। [५] तत्पश्चात् श्रावण कृष्ण नवमीसे अगहन कृष्ण नवमी तक नौ नवमियोके नौ उपवास करे। इस प्रकार कुल ३५ अक्षरोके पैतीस उपवास किये जाते हैं । णमोकार मन्त्रके प्रथम पदमें ७ अक्षर, द्वितीयमे ५,