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मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
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तृतीयमे ७, चतुर्थमे ७ और पंचममें ९ हैं, अतः उपवासोका क्रम भी ऊपर इसी के अनुसार रखा गया है । उपवासके दिन व्रत करते हुए भगवान्का अभिषेक करनेके उपरान्त णमोकार मन्त्रका पूजन तथा त्रिकाल इस मन्त्र का जाप किया जाता है । व्रतके पूर्ण हो जानेपर उद्यापन कर देना चाहिए । इस व्रत का पालन गोपाल नामक ग्वालने किया था, जो चम्पानगरी में तद्भवमोक्षगामी सुदर्शन हुआ । वर्धमानपुराण में समोनार व्रतको ७० दिनमे ही समाप्त कर देनेका विधान है |
णमोकार व्रत अब सुन राज, सत्तर दिन एकान्तर साज ।
अर्थात् ७० दिनो तक लगातार एकाशन करे । प्रतिदिन भगवान् के अभिषेकपूर्वक णमोकारमन्त्रका पूजन करे । त्रिकाल णमोकार मन्त्रका जाप करे । रात्रिमे पचपरमेष्ठी के स्वरूपका चिन्तन करते हुए या इस महामन्त्र का ध्यान करते हुए अल्प निद्रा ले । जो व्यक्ति इस व्रतका पालन करता है, उसकी आत्मा में महान पुण्यका सचय होता है ओर समस्त पाप भस्म हो जाते हैं ।
णमोकार मन्त्रका त्रिकाल जाप, त्रेपन क्रिया व्रत, लघु ल्यविधान, वृहत्पत्यविवान, नक्षत्रमाला, सप्तकुम्भ, लघुनिहनिष्क्रीडित वृहत्सहनिकोडित, भाद्रवनसिंहनिष्क्रीडित, त्रिगुणमार, सर्वतोभद्र, महासर्वतोभद्र, दुखहरण, जिनपूनापुरन्दरव्रत, लघुवमंचक्र, वृहद्धर्मचक्र, वृहद् जिनगुणसम्पत्ति, लघुजिनगुणसम्पत्ति, वृहत्मुखसम्पत्ति, मध्यम मुखसम्पत्ति, लघुसुखसम्पत्ति, रुद्रवसन्तव्रत, शीलकल्याणकव्रत, श्रुतिकल्याणकन, चन्द्रकल्याणकव्रत, रघुकल्याणवव्रत, वृहद्रत्नावली व्रत, मध्यम रत्नावलीव्रत, लघुरत्नावलीव्रत, वृहद् मुक्तावलीव्रन, मध्यममुक्तावलीव्रत, लघुमुक्तावली - व्रत, एकानलोव्रत, लघुएकावलीव्रत, द्विकावलीयन, लघुद्विकावलोव्रत, लघुकनकावलीयन, वृहदुकनकावलीव्रत, लघुमृदङ्गमध्यवन, वृहद् मृदङ्गमध्यव्रत, मुरजमध्यव्रत, वज्र मध्यव्रत, अक्षयनिधिव्रत, मेघमाला व्रत, सुख१२
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