________________
१७८ मंगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन कारणवत, आकाशपंचमी, निर्दोपसप्तमी, चन्दनषष्ठी, श्रवणद्वादशी, श्वेतपंचमी, सर्वार्थसिद्धिव्रत, जिनमुखावलोकनन्नत, जिनरात्रिनत, नवनिचिन्नत, अशोकरोहिणीव्रत, कोकिलापचमीव्रत, रुक्मिणीव्रत, अनस्तमीव्रत, निर्जरपंचमीव्रत कवलचन्द्रायणव्रत, बारह विजोरावत, ऐसोनव्रत, ऐसो. दशवत, कजिकव्रत, कृष्णपचमीव्रत, नि शल्यअष्टमीव्रत, लक्षणपंक्तिवत, दुग्धरसीव्रत, धनदकलशवत, कलिचतुर्दशी, शीलसप्तमीव्रत, नन्दसप्तमीव्रत, ऋषिपंचमीयत, सुदर्शनवन, गन्धअष्टमीव्रत, शिवकुमारवेलावत, मौनव्रत, वारहतपव्रत और परमेष्ठिगुणवतके विधानमें बतलाया गया है। अर्थात् उपर्युक्त व्रतोको णमोकार मन्त्रके जाप-द्वारा ही सम्पन्न किया जाता है। कुल २५-२६ व्रत ऐसे हैं, जिनमे णमोकार मन्त्रसे उत्पन्न मन्त्रोके जापका विधान है । इस मन्त्रका प्रतसाधनाके लिए कितना महत्त्व पूर्ण स्थान है, यह उपर्युक्त व्रतोंकी नामावलीसे ही स्पष्ट है । श्रावक व्रतोंके पालन द्वारा अनेक प्रकारके पुण्यका अर्जन करता है। बताया गया है कि
अनेकपुण्यसंतानकारणं स्वनियन्धनम् । पापघ्नं च क्रमादेतत् व्रतं मुक्तिवशीकरम् ॥ यो विधत्ते व्रतं सारमेतरसर्वसुखावहम् ।
प्राप्य षोडशमं नाकं स गच्छेत् क्रमशः शिवम् ॥ अर्थात्-व्रत अनेक पुण्यको सन्तानका कारण है, संमारके समस्त पापोको नाश करनेवाला है एवं मुक्ति-लक्ष्मीको वशमे करनेवाला है, जो महानुभाव सर्वसुखोत्पादक श्रेष्ठ व्रत धारण करते हैं, ये सोलहवें स्वर्गके सुखोका अनुभव कर अनुक्रमसे अविनाशी मोक्षसुस्वको प्राप्त करते हैं। अतएव यह स्पष्ट है कि व्रतोंके सम्यक् पालन करनेके लिए णमोकार मन्त्र का ध्यान करना अत्यावश्यक है ।
णमोकार मन्त्रके महत्त्व और फलको प्रकट करनेवाली अनेक कथाएं जैन-साहित्यमे आयी हैं। दिगम्बर और श्वेताम्बरदोनो सम्प्रदायके धर्मकथासाहित्यमें इस महामन्त्रका बडा भारी फल बतलाया गया है। पुण्यानव