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________________ १७४ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन पुण्यपञ्चनमस्कारपदपाठपविनिती। चतुरुत्तममाङ्गल्यशरणप्रतिपादिनी ॥ आचार्यकल्प श्री पं० आशाघरजीने भी श्रावकोकी क्रियाओं के प्रारम्भमे णमोकार महामन्त्रके पाठका प्राधान्य दिया है। पूज्यपाद स्वामीने दशभक्तिमे तथा उस ग्रन्थके टीकाकार प्रभाचन्द्रने इस महामन्त्र को दण्डक कहा है। इसे दण्डक कहे जानेका अभिप्राय ही यह है कि श्रावककी समस्त क्रियाओमे इसका उपयोग किया जाता है। श्रावकको एक भी क्रिया इस महामन्त्रके विना सम्पन्न नहीं की जा सकती है। षोडशकारण सस्कारोके अवसरपर इस मन्त्रका उच्चारण किया जाता है। ऐसा कोई भी मागलिक कार्य नहीं, जिसके आरम्भमे इसका उपयोग न किया जाये । मृत्युके समय भी महामन्त्रका स्मरण आत्माके लिए अत्यन्त कल्याणकारक बताया है। जैनाचार्योंने बतलाया है कि जीवन-भर धर्म साधना करनेपर भी कोई व्यक्ति अन्तिम समयमें आत्मसाधन-णमोकार मन्त्रकी आराधना द्वारा निजको पवित्र करना भूल जाये, तो वह उसी प्रकार माना जायेगा, जिस प्रकार निरन्तर अलशस्त्रोका अभ्यास करनेवाला व्यक्ति युद्धके समय शस्त्र प्रयोग करना भूल जाये । अतएव अन्तिम समयमें अनानिधन इस महामन्त्रका जाप करके अपनी आत्माको अवश्य पवित्र करना चाहिए। कहा गया है जिणवयणमोसहमिणं विसयसुहविरेयणं अमिदभुदं । जरमरणवाहिवेयण खयकरणं सबढुक्खाणं ॥ -मूलाचार अर्थात् जिनेन्द्र भगवान्की वचनरूपी ओषधि इन्द्रिय-जनित विषयसुखोका विरेचन करनेवाली है,-मूलाचार अमृत स्वरूप है और जरा, मरण, व्याधि, वेदना आदि सब दु खोका नाश करनेवाली है । इस प्रकार जो पंचपरमेष्ठीके स्वरूपका स्मरण करनेवाले णमोकार मन्त्रका ध्यान करता है, वह निश्चयत. सल्लेखनाव्रतको धारण करता है । श्रावकको ससारके
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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