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मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन १७३ योगिता अत्यधिक है । इसके बिना यह विधि सम्पन्न नहीं की जाती है । २७ श्वासोच्छ्वासमे ९ बार इसे पढा जाता है।
आलोचनाके समय सोचे कि पूर्व, उत्तर, दक्षिण और पश्चिम चारों दिशाओ और ईशान आदि विदिशाओमे इधर-उधर घूमने या ऊपरकी
ओर मुंह कर चलनेमे प्रमादवश एकेन्द्रियादि जीवोकी हिंसा की हो, करायी हो, अनुमति दी हो, वे सब पाप मेरे मिथ्या हो। मैं दुष्कर्मोकी शान्तिके लिए पचपरमेष्ठीको नमस्कार करता हूँ। इस प्रकार मनमे सोचकर अथवा वचनोसे उच्चारण कर नौ बार रणमोकार मन्त्रका पाठ करना चाहिए।
सन्ध्या-वन्दनके समय "ॐ ही श्वी क्ष्वी वं मं हं स तं प द्रां ह्रीं हंस स्वाहा।" इस मन्त्र-द्वारा द्वादशागोका स्पर्श कर प्राणायाम करना चाहिए। प्राणायाममें दाये हाथकी पांचों अंगुलियोंसे नाक पकडकर अंगूठेसे दायें छिद्रको दबाकर बायें छिद्रसे वायुको खीचे । स्वीचते समय 'णमो अरिहताणं' और 'णमो सिद्माण' इन दोनो पदोका जाप करे । पूरी वायु खीच लेनेपर अंगुलियोंसे वायें छिद्रको दबाकर वायुको रोक ले। इस समय 'णमो आइरियाणं' और 'णमो उवज्झायाण' इन पदोका जाप करे । अन्त मे अंगूठेको ढीलाकर धीरे-धीरे दाहिने छिद्रसे वायुको निकालना चाहिए तथा 'णमो लोए सबसाहूण' पदका जाप करना चाहिए। इस तरह सन्ध्या-वन्दनके अन्तमे नौवारणमोकारमन्त्र पढकर चारों दिशाओको नमस्कार कर विधि समाप्त करना चाहिए। हरिवंशपुराणमे वताया गया है कि णमोकार मन्त्र और चतुरुत्तममंगल श्रावककी प्रत्येक क्रियाके साथ सम्बद्ध हैं, श्रावककी कोई भी क्रिया इस मन्त्रके विना सम्पन्न नहीं की जाती है। दैनिक पूजन आरम्भ करनेके पहले ही सर्वपाप और विघ्नका नाशक होनेके कारण इसका स्मरण कर पुप्पाजलि क्षेपण की जाती है। श्रावक स्वस्तिवाचन करता हुमा इस महामन्त्रका पाठ करता है । बताया गया है