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मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन १०७ उत्तर दिया जा सकता है। इन पवनोकी साधनासे योगीमें अनेक प्रकारकी अलौकिक और चमत्कारपूर्ण शक्तियोका प्रादुर्भाव हो जाता है। प्राणायामकी क्रियाका उद्देश्य भी मनको स्थिर करना है, प्रमादको दूर भगाना है। जो साधक यत्नपूर्वक मनको वायुके साथ-साथ हृदय कमलकी कणिकामें प्रवेश कराकर वहां स्थिर करता है, उसके चित्तमें विकल्प नहीं उठते और विषयोंकी आशा भी नष्ट हो जाती है तथा अन्तरगमें विशेप ज्ञानका प्रकाश होने लगता है। प्राणायामकी महत्ताका वर्णन करते हुए शुभचन्द्राचार्यने बतलाया है
जन्मशतजनितमुग्र प्राणायामाद्विलीयते पापम् । नाडीयुगलस्यान्ते यतेर्जिताक्षस्य वीरस्य ॥
-ज्ञानार्णव प्र० २९, इलो० १०२ अर्थ-पवनोके साधनरूप प्राणायामसे इन्द्रियोके विजय करनेवाले साधकोके सैकडो जन्मके सचिन किये गये तीन पाप दो घडीके भीतर लय हो जाते हैं।
प्रत्याहार-इन्द्रिय और मनको अपने अपने विषयोंमें खोंचकर अपनी इच्छानुसार किसी कल्याणकारी ध्येयमें लगानेको प्रत्याहार कहते हैं। अभिप्राय यह है कि विपयोसे इन्द्रियोको और इन्द्रियोसे मनको पृथक कर मनको निराकुल करके ललाटपर धारण करना प्रत्याहार-विधि है। प्रत्याहारके सिद्ध हो जानेपर इन्द्रियां वशीभूत हो जाती हैं और मनोहरसे मनोहर विपयकी ओर भी प्रवृत्त नही होती है। इसका अभ्यास प्राणायामके उपरान्त किया जाता है। प्राणायाम द्वारा ज्ञानतन्तुमओके अधीन होनेपर इन्द्रियोका वशमें आना सुगम है । जैसे कछुआ अपने हस्त-पादादि अंगोको
१ सुख-दुःख-जय-पराजय-जीवित मरणानि विघ्न इति केचित् । वायु. प्रपन्चरचनामवेदिनां कथमय मानः ।।
-शा० प्र० २६, श्लो० ७७