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मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
इस महामन्त्रके मनन, स्मरण, चिन्तन और ध्यानमें अजित भावोस्थायीरूपसे स्थित कुछ संस्कारमें जिनमे अधिकांश संस्कार विषय-कषायसम्बन्धी ही होते-मे परिवर्तन होता है । मंगलमय आत्माओंके स्मरणसे मन पवित्र होता है और पुरातन प्रवृत्तियोमे शोधन होता है, जिससे सदाचार व्यक्तिके जीवनमे आता है। उच्च आदर्शसे उत्पन्न स्थायीभावके अभावमें ही व्यक्ति दुराचारकी मोर प्रवृत्त होता है। अतएव मनोविज्ञान स्पष्ट रूपसे कहता है कि मानसिक उद्वेग, वासना एवं मानसिक विकार उच्च आदर्शके प्रति श्रद्धाके अभावमे दूर नहीं किये जा सकते हैं। विकारोको अधीन करनेकी प्रतिक्रियाका वर्णन करते हुए कहा गया है कि परिणाम-नियम, अभ्यास-नियम और तत्परता-नियमके द्वारा उच्चादर्शको प्राप्त कर विवेक और आचरणको दृढ करनेसे ही मानसिक विकार और सहज पाशविक प्रवृत्तियां दूर की जा सकती है।
णमोकार मन्त्रके परिणाम-नियमका अर्थ यहाँपर है कि इस मन्त्रकी आराधना कर व्यक्ति जीवनमे सन्तोषकी भावनाको जाग्रत करे तथा समस्त सुखोंका केन्द्र इसीको समझे । अभ्यास-नियमका तात्पर्य है कि इस मन्त्रका. मनन, चिन्तन और स्मरण निरन्तर करता जाये । यह सिद्धान्त है कि जिस योग्यताको अपने भीतर प्रकट करना हो, उस योग्यताका वार-बार चिन्तन, स्मरण किया जाये । प्रत्येक व्यक्तिका चरम लक्ष्य ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्यरूप शुद्ध आत्मशक्तिको प्राप्त करना है। यह शुद्ध अमूर्तिक रत्नत्रयस्वरूप सच्चिदानन्द आत्मा ही प्राप्त करने योग्य है, अतएव रत्नत्रयस्वरूप पंचपरमेष्ठी वाचक णमोकार महामन्त्रका अभ्यास करना परम आवश्यक है। इस मन्त्रक अभ्यास-द्वारा शुद्ध आत्मस्वरूपमे तत्परताके साथ प्रवृत्ति करना जीवनमे तत्परता नियममे उतारना है। मनुष्यमे अनुकरणकी प्रधान प्रवृत्ति पायी जाती है, इसी प्रवृत्तिके कारण पचपरमेष्ठीका आदर्श सामने रखकर उनके अनुकरणसे व्यक्ति अपना विकास कर सकता है।
मनोविज्ञान मानता है कि मनुष्य में भोजन ढूंढना, भागना, लड़ना,