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मगलमन्त्र णमोकार . एक अनुचिन्तन
ध्रौव्यसहित हूँ, वह व्यक्ति व्यर्थके विचारोसे अपनी रक्षा करता है, पवित्र विचार या ध्यानमें अपने को लीन रखता है। यह मागन्तिरीकरणका सुन्दर प्रयोग है।
मूलप्रवृत्तियोके परिवर्तनका चौथा उपाय शोधन है । जो प्रवृत्ति अपने अपरिवर्तित रूपमें निन्दनीय कर्मोमें प्रकाशित होती है, वह शोधित रूपम प्रकाशित होनेपर श्लाघनीय हो जाती है। वास्तवमें मूलप्रवृत्तिका शोधन उसका एक प्रकारसे मार्गान्तरीकरण है। किसी मन्त्र या मगलवाक्यका चिन्तन आर्त और रौद्र ध्यानसे हटाकर धर्मध्यानमें स्थित करता है अतः धर्मध्यानके प्रधान कारण णमोकारमन्त्रके स्मरण और चिन्तनकी परम आवश्यकता है।
उपर्युक्त मनोवैज्ञानिक विश्लेषणका अभिप्राय यह है कि णमोकारमन्त्रके द्वारा कोई भी व्यक्ति अपने मनको प्रभावित कर सकता है। यह मन्त्र मनुष्यके चेतन, अवचेतन और अचेतन तोनो प्रकारके मनोको प्रभावित कर अचेतन और अवचेतनपर सुन्दर स्थायी भावका ऐसा संस्कार डालता है, जिससे मूल प्रवृत्तियोका परिकार हो आता है और अचेतन मनमें वासनाओको अजित होनेका अवसर नहीं मिल पाता। इस मन्त्रको माराधनामें ऐसो विद्युत्-गक्ति है, जिससे इसके स्मरणसे व्यक्तिका अन्तर्द्वन्द्व शान्त हो जाता है, नैतिक भावनाओका उदय होता है, जिससे अनैतिक वासनामोका दमन होकर नैतिक सस्कार उत्पन्न होते हैं। आभ्यन्तरमें उत्पन्न विद्युत् बाहर और भोतरमें इतना प्रकाश उत्पन्न करती है, जिससे वासनात्मक सस्कार भस्म हो जाते है और ज्ञानका प्रकाश व्याप्त हो जाता है । इस मन्त्रके निरन्तर उच्चारण, स्मरण और चिन्तनसे मात्मामे एक प्रकारको शक्ति उत्पन्न होती है, जिसे माइकी भाषामे विद्युत् कह सकते हैं, इस शक्ति द्वारा आत्माका शोधन-कार्य तो किया ही जाता है, साथ ही इससे अन्य आश्चर्यजनक कार्य भी सम्पन्न किये जा सकते हैं।