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मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
ण त द ध य र ल व स और ह ये मूल व्यजन इस मन्त्रमे निहित हैं । अतएव ६४ अनादि मूल वर्णों को लेकर समस्त श्रुतज्ञानके अक्षरोका प्रमाण निम्न प्रकार निकाला जा सकता है । गाथासूत्र निम्न प्रकार हैचउसद्विपद विरलिय दुगं च दाउण सगुण किया ।
सऊण च कए पुण सुदणाणस्लक्खरा होंति ॥ भर्थ -- उक्त चौसठ अक्षरोका विरलन करके प्रत्येक ऊपर दोका अक देकर परस्पर सम्पूर्ण दोके अकोका गुणा करनेसे लव्धराशिमे एक घटा देनेसे जो प्रमारण रहता है, उतने ही श्रुतज्ञानके अक्षर होते हैं । यहाँ ६४ अक्षरोका विरलन कर रखा तो-
२ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ २ ૨ ૨ ૨ ૨ ૨ १ । १ । १ । १ । १ । १ । १ । १ । १ । १ । १ । १ । १ । १
१८४४६७४४०७३७०९५५१६१६-१ १८४४६७४४०७३७०९५५१ ६१५ समस्त श्रुतज्ञानके अक्षर । इन अक्षरोंका प्रमारण गाथामे निम्न
प्रकार कहा गया है । -
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एकट्ठे च च य छस्सत्तयं च च य सुण्णसत्ततियसत्ता । सुण्णं णव पण पंचय एक्कं छक्केक्कगो य पणय च ॥
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अर्थात् - एक आठ चार-चार छह सात चार-चार शून्य सात तीन सात शून्य नव पच-पच एक छह एक पाँच समस्त श्रुतज्ञान के अक्षर हैं ।
इस प्रकार णमोकार मन्त्रमे समस्त श्रुतज्ञानके अक्षर निहित हैं । क्योकि अनादि निघन मूलाक्षरोपर से ही उक्त प्रमाण निकाला गया है । मत संक्षेपमे समस्त जिनवाणीरूप यह मन्त्र है ! इसका पाठ या स्मरण करनेसे कितना महान् पुण्यका बन्ध होता हैं । तथा केवल ज्ञानलक्ष्मीकी प्राप्ति भी इस मन्त्रको आराधनासे होती है। ज्ञानार्णवमे शुभचन्द्राचार्यने इस मन्त्रकी आराधनाका फल बताते हुए लिखा हैप्रियमास्यन्तिकों प्राप्ता योगिनो येन कंचन | अमुमेव महामन्त्रं ते समाराध्य केवलम् ॥