________________
७४
मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन ।
मालाजाप-एक-सौ आठ दानेकी, माला-द्वारा जाप करे ! ___ इन तीनो जापकी विधियोमे उत्तम कमल-जाप-विधि है। इसमे उपयोग अधिक स्थिर रहता है। तथा कर्म-बन्धनको क्षीण करनेके लिए यही जापविधि अधिक सहायक है। सरल विधि माला-जाप है। इसमे किसी भी तरहका झझट-झगडा नहीं है। सीधे माला लेकर जाप कर लेना है । जाप करनेके पश्चात् भगवान्का दर्शन करना चाहिए। बताया गया है
ततः समुत्थाय जिनेन्द्रबिम्बं पश्येत्परं मंगलदानदशम् ।।
पापप्रणाशं परपुण्य हेतुं सुरासुरै. सेवितपादपमम् ॥ । अर्थात्-प्रातःकालके जापके पश्चात् चैत्यालयमे जाकर सव तरहके मगल करनेवाले, पापोको क्षय करनेवाले, सातिशय पुण्यके कारण एव सुरासुरो-द्वारा वन्दनीय श्रीजिनेन्द्र भगवानके दर्शन करना चाहिए। ___इस णमोकार मन्त्र का जाप विभिन्न प्रकारकी इष्टसिद्धियो और अरिष्टविनाशनोके लिए अनेक प्रकारसे किया जाता है। किस कार्यके लिए किस प्रकार जाप किया जायेगा, इसका आगे निरूपण किया जायेगा । जापका फल बहुत कुछ विधिपर निर्भर है।
उपर्युक्त सक्षिप्त विवेचनके अनन्तर यह णमोकारमन्त्र जिनागमका सार कहा गया है। यह समस्त द्वादशागरूप बतलाया गया है । अतः इस कथनकी सार्थकता सिद्ध की जाती है।
आचार्यनि द्वादशाग जिनवाणीका वर्णन करते हुए प्रत्येककी पदसख्या तथा समस्त श्रुतज्ञानके अक्षरोकी संख्याका वर्णन किया है। इस
महामन्यमे समस्त श्रुतज्ञान विद्यमान है। द्वादशांगरूप णमोकारमन्न
क्योकि पचपरमेष्ठीके अतिरिक्त अन्य श्रुतज्ञान
कुछ नहीं है। अतः यह महामन्त्र समस्त द्वादशाग जिनवाणी रूप है। इस महामन्त्रका विश्लेषण करने पर निम्न निष्कर्ष सामने आते हैं