Book Title: Manan aur Mulyankan Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Adarsh Sahitya SanghPage 18
________________ मनन और मूल्यांकन सकता। यह कर्तृत्व की बात आत्मा में इसीलिए उठी कि आत्मा में ऐसी भी क्षमता है कि वह स्वाभाविक पर्याय के अतिरिक्त वैभाविक पर्याय का सृजन भी कर सकती है। ८ प्राण-शक्ति का कर्त्ता कौन है ? यह सारी प्राण-शक्ति और उसके आधार पर होने वाली मन, वचन और काया की प्रवृत्तियां -- इन सबका कर्त्ता मूल चैतन्य ही है । निश्चय नय से विचार करने वाले कहते हैं कि आत्मा अपने ही भावों का कर्त्ता है | कर्तृत्व का विचार भी दो दृष्टियों से हुआ है— उपादान की दृष्टि से और निमित्त की दृष्टि से । उपादान की दृष्टि से यह ठीक है कि कोई किसी का कर्ता नहीं है । जब हम मान लेते हैं कि आत्मा भी अनादि है तो फिर उपादन की दृष्टि किसी का नहीं है । कर्तृत्व आदि का विचार निमित्त की दृष्टि से है । आत्मा के कारण पुद्गल में परिवर्तन होता है और पुद्गल के कारण आत्मा में परिवर्तन होता है । अतः आत्म-कर्तृत्व अपने आप सिद्ध हो जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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