Book Title: Manan aur Mulyankan Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Adarsh Sahitya SanghPage 76
________________ ६६ मनन और मूल्यांकन विवेचन मिलता है। दो प्रकार का जीवन है । एक है-वृत्तियों से संश्लिष्ट जीवन और दूसरा है-वृत्तिशून्य जीवन। वृत्तियों से संश्लिष्ट जीवन वृत्तिसारूप्य का जीवन है, संज्ञाओं का जीवन है। वृत्तिशून्य जीवन नो-संज्ञोपयुक्त या संज्ञाशून्य जीवन है। जब हमारी चेतना की प्रवृत्ति संज्ञा में होती है तब हम संज्ञोपयुक्त होते हैं, वृत्तिसारूप्य का जीवन जीते हैं। जब चेतना की प्रवृत्ति चेतना में ही होती है तब नो-संज्ञोपयुक्त जीवन जीते हैं। जीवन की दो धाराएं हैं-समाधि और असमाधि । असमाधि की धारा में जीने वाले व्यक्ति को कैसे पहचाना जा सकता है ? समाधि की धारा में जीने वाले व्यक्ति को कैसे पहचाना जा सकता है ? चित्तवृत्ति का निरोध कैसे किया जा सकता है ? एकाग्रता से प्रारम्भ कर निरोध की भूमिका तक कैसे पहुंचा जा सकता है ? योगदर्शन का हार्द इन चार सूत्रों (प्रश्नों के उत्तरों) में स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया गया है। जो हार्द को जान लेता है, उसके लिए समूचे शरीर की यात्रा सहज हो जाती है। योगदर्शन के हार्द को जान लेने पर, उसका पारायण सहज हो जाता है। (पातंजल योगदर्शन के आधार पर-पहला प्रवचन-लाडनूं ३०-१२-७६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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