Book Title: Manan aur Mulyankan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 122
________________ १५. अतोन्द्रिय चेतना मनुष्य का व्यक्तित्व दो आयामों में विकसित होता है। उसका बाहरी आयाम विस्तृत और निरंतर गतिशील होता है। उसका आन्तरिक आयाम संकुचित और निष्क्रिय होता है। उसके बाहरी आयाम की व्याख्या स्थूल-शरीर, वाणी, मन और बुद्धि के आधार पर की जाती है। उसके आन्तरिक आयाम की व्याख्या सूक्ष्म और सूक्ष्मतर-शरीर, प्राण-शक्ति, प्रज्ञा (अतीन्द्रिय चेतना) और अमूर्छा के आधार पर की जा सकती है। बाहरी व्यक्तित्व से हमारा घनिष्ट संबंध है । उसमें बुद्धि का स्थान सर्वोपरि है, इसलिए वह हमारे चिन्तन की सीमा बन गयी। उससे परे जाकर चिन्तन करना हमारे लिए स्वाभाविक नहीं है। यह अपराविद्या की भूमिका है। पराविद्या का पहला चरण है बुद्धि की सीमा का अतिक्रमण। जैसे ही प्रज्ञा का जागरण होता है, बुद्धि की सीमा अतिक्रान्त हो जाती है। प्रज्ञा की सीमा में प्रवेश करते ही यह ज्ञात होता है कि बुद्धि मनुष्य की चेतना का अंतिम पड़ाव नहीं है। इन्द्रियों से परे मन है और मन से परे बुद्धि है। बाहरी व्यक्तित्व इस सीमा से आगे नहीं जा सकता। इस सीमा को पार करते ही मनुष्य का आन्तरिक व्यक्तित्व उजागर हो जाता है। वहां प्राण-शक्ति प्रखर होती है और चेतना सूक्ष्म । बुद्धि की सीमा में पदार्थ के प्रति मूर्छा का न होना संभव नहीं माना जाता, किन्तु प्रज्ञा की सीमा में समता का भाव निर्मित होता है और अमर्त्य संभव बन जाती है। पराविद्या के क्षेत्र में प्राण-ऊर्जा और अतीन्द्रिय चेतना का अध्ययन किया गया है, किन्तु अमूर्छा या वीतरागता उसके अध्ययन का विषय अभी नहीं बना है। यह परामनोविज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है। अभी तक परामनोविज्ञान का अध्ययन चार विषयों तक सीमित है, जैसे अतीन्द्रियज्ञान (CLAIRVOYANCE), विचार-संप्रेषण (TELEPATHY), पूर्वाभास (PRE-COGNITION) और मस्तिष्कीय आन्दोलन द्वारा प्राणी जगत् और पदार्थ का प्रभावित होना (PSYCHO-KINESIS)। अमूर्छा का विधायक अर्थ है-समता। उसका विकास होने पर अतीन्द्रिय चेतना अपने आप विकसित होती है। परामनोविज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाले लोग केवल अतीन्द्रिय चेतना के विकास की खोज में लगे हुए हैं। यह खोज बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140