Book Title: Manan aur Mulyankan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 125
________________ अतीन्द्रिय चेतना १.१५ अतीन्द्रिय चेतना की अभिव्यक्ति के लिए विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र बन सकते हैं अथवा उनके आसपास का क्षेत्र विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र बन सकता है । उनके अतिरिक्त शरीर के और भी अनेक भाग विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र बन सकते हैं । इसलिए शक्ति केन्द्रों और चैतन्य- केन्द्रों की संख्या बहुत अधिक हो जाती है। हमारी पसलियों में कोख के नीचे बहुत शक्तिशाली चैतन्य- केन्द्र है । हमारे कंधे बहुत बड़े शक्ति केन्द्र हैं। फलित की भाषा में कहा जा सकता है कि शक्ति केन्द्र और चैतन्य -केन्द्र शरीर के अवयव नहीं हैं, किन्तु शरीर के वे भाग हैं, जिनमें विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र बनने की क्षमता है । वे भाग नाभि से नीचे पैर की एड़ी तक तथा नाभि से ऊपर सिर की चोटी तक आगे भी हैं, पीछे भी हैं, दाएं भी हैं और बाएं भी हैं । समता, ऋजुता आदि विशिष्ट गुणों की साधना के द्वारा वे केन्द्र सक्रिय हो जाते हैं, 'करण' बन जाते हैं, तब उनमें अतीन्द्रिय चेतना प्रकट होने लग जाती है । यह कोई आकस्मिक संयोग नहीं है । यह एक स्थाई विकास है । एक बार चैतन्य- केन्द्र के सक्रिय हो जाने पर जीवन भर उसकी सक्रियता बनी रहती है । अतीन्द्रिय-ज्ञानी जब चाहे तब अपनी अतीन्द्रिय चेतना का करणभूत चैतन्यकेन्द्र के द्वारा उपयोग कर सकता है। वह सूक्ष्म, व्यवहित और दूरस्थ पदार्थ का साक्षात् कर सकता है । इस चर्चा से अतीन्द्रिय चेतना की प्रारंभिक अवस्था -! - पूर्वाभास, अतीतबोध और उसकी विकसित अवस्था की सीमा को समझा जा सकता है । मनः पर्यवज्ञान या परचित्तज्ञान भी अतीन्द्रियज्ञान है । विचार-संप्रेषण विकसित इन्द्रिय- चेतना काही एक स्तर है । उसे अतीन्द्रियज्ञान कहना सहज-सरल नहीं है । विचारसंप्रेषण की प्रक्रिया में अपने मस्तिष्क में उभरने वाले विचार-प्रतिबिम्बों के आधार पर दूसरे के विचार जाने जाते हैं । मनः पर्यवज्ञान में विचार - प्रतिबिम्बों का साक्षात्कार होता है । प्रत्येक विचार अपनी आकृति का निर्माण करता है । विचार का सिलसिला चलता है तब नयी-नयी आकृतियां निर्मित होती जाती हैं। और प्राचीन आकृतियां विसर्जित हो, आकाशिक रेकार्ड में जमा होती जाती हैं। मनः पर्यवज्ञानी उन आकृतियों का साक्षात्कार कर संबद्ध व्यक्ति की विचारधारा को जान लेता है । उसमें अतीत, वर्तमान और भविष्य के विचारों को जानने की भी क्षमता होती है । मानसिक चिन्तन के लिए उपर्युक्त परमाणुओं की एक राशि होती है । वह परमाणु-राशि हमारे चिन्तन में सहयोग करती है । उसको ग्रहण किए बिना हम कोई भी चिन्तन नहीं कर सकते। उस राशि के परमाणुओं के भावी परिवर्तन के आधार पर मनः पर्यवज्ञानी भविष्य में होने वाले विचार को भी जान सकता है । अतीन्द्रियज्ञान प्रत्यक्षज्ञान है । जिस ज्ञान के क्षण में इन्द्रिय और मन को माध्यम बनाना आवश्यक नहीं होता, वह ज्ञान प्रत्यक्ष कहलाता है । इन्द्रिय और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140