Book Title: Manan aur Mulyankan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 84
________________ ७४ मनन और मूल्यांकन तब एक स्थिति बनती है और बाह्य जगत् का रूप बदल जाता है। प्रत्याहार. को बाह्य नहीं कह सकते, क्योंकि उससे भीतर में प्रवेश होता है, इन्द्रियां जो बाहर प्रवृत्ति करती थीं वे अब भीतर की ओर मुड़ गयीं, मन जो बाहर दौड़ता था, भीतर की ओर मुड़ गया, चित्त की चेतना भी भीतर की ओर सूक्ष्म-जगत् में और अन्तर्जगत् में प्रवेश कर गयी। यह एक मोड़ का बिन्दु है। यहां से मोड़ प्रारंभ होता है। इस बिन्दु को हम चाहें तो अगले विभाग में रख सकते हैं, चाहें तो इस विभाग में रख सकते हैं । अच्छा तो यह होता कि तीन भूमिकाएं की जाती-बहिरंगयोग, मध्य-योग और उत्तर-योग। धारणा, ध्यान और समाधि-यह उत्तर-योग है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम-यह बहिरंग-योग है और प्रत्याहार-यह मध्य-योग है। यह दोनों को जोड़ने वाला है। जब प्रत्याहार होता है तो ये चारों ही फिर अन्तर्जगत् के साथ जुड़ जाते हैं। पहले नहीं जुड़ते । कायगुप्ति, वचनगुप्ति और मनोगुप्ति-ये तीन गुप्तियां होती हैं तो पांच महाव्रत और पांच समितियां अन्तर्जगत् के साथ जुड़ जाती हैं । जब ये तीन गुप्तियां नहीं होती हैं तो समितियां और महाव्रत भी मात्र बाह्य आचरण ही रह जाते हैं, अन्तर्जगत् के साथ नहीं जुड़ते। इनका एक मध्य बिन्दु है-प्रत्याहार। इस मध्य बिन्दु को चाहे हम धारणा, ध्यान, समाधि-इस त्रिपदी के साथ जोड़कर चतुष्पदी बना दें या यम, नियम के साथ जोड़कर षट्पदी बना दें। पतंजलि ने शायद यह सोचा हो कि प्रत्याहार को प्रथम वर्गीकरण में रखने से शेष चार-आसन, यम, नियम आदि भी कम-से-कम योग के अंग बन जाएंगे और यदि प्रत्याहार साथ में न रहा तो वे चार भी शायद योग के अंग न बन सकें, क्योंकि आसन तो एक मल्ल भी करता है, स्वास्थ्य की साधना करने वाला व्यक्ति भी करता है। प्राणायाम हर कोई व्यक्ति करता है, जाने-अनजाने करता ही है। कौन ऐसा व्यक्ति है जो प्राणायाम नहीं करता? जब थोड़ा-सा 'जी' घुटने लगता है तो अपने-आप दीर्घश्वास का प्रयोग शुरू कर देता है। प्राणायाम का प्रयोग तो जानवर भी करते हैं और यम, नियम का प्रयोग हर सामाजिक आदमी करता है। धर्म को, साधना को, आत्मा को न मानने वाला व्यक्ति भी यम, नियम का प्रयोग करता है। कोई ऐसा व्यक्ति नहीं, जो इन चारों का प्रयोग न करे । प्रत्याहार की जरूरत उनको नहीं होती। अन्तर्दृष्टि जागती है तभी प्रत्याहार किया जाता है, नहीं तो कोई आवश्यकता नहीं होती। प्रत्याहार की साधना के साथ जुड़कर यम, नियम, आसन आदि आध्यात्मिक बन जाते हैं, इस दृष्टि से प्रत्याहार को उस विभाग में रख दिया। प्रत्याहार से जो एक द्वार खुलता है और उसके बाद जो कुछ करने का होता है उसे अन्तरंग की कोटि में रख दिया गया है। ___ आठवें सूत्र के पश्चात् नौवें से पन्द्रहवें सूत्र तक परिणाम की चर्चा है। यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। समाधि के पश्चात् परिणाम की चर्चा की गयी है । यह बहुतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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