Book Title: Manan aur Mulyankan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 109
________________ मंगलवाद : नमस्कार महामंत्र ६६ घर्षण होता है, जो मस्तिष्कीय प्राण-विद्युत् का संचार होता है, वह 'न' के उच्चारण से नहीं होता। अरहंताणं के अकार और अरिहंताणं के इकार का भी मंत्रशास्त्रीय अर्थ एक नहीं है। मंत्रशास्त्र के अनुसार अकार का वर्ण स्वणिम और स्वाद नमकीन होता है तथा इकार का वर्ण स्वर्णिम और स्वाद कषैला होता है। अकार पुल्लिग और इकार नपुंसकलिंग होता है। अरहंताणं-यह पाठ-भेद भगवती सूत्र की वृत्ति में व्याख्यात है। वत्तिकार अभयदेवसूरी ने इसका अर्थ अपुनर्भव किया है। जैसे बीज के अत्यन्त दग्ध होने पर उससे अंकुर नहीं फूटता, वैसे ही कर्म-बीज के अत्यन्त दग्ध हो जाने पर भवांकुर नहीं फूटता। आवश्यकनियुक्ति और धवला में 'अरुहंत' पाठ व्याख्यात नहीं है। इससे प्रतीत होता है कि यह पाठान्तर उनके उत्तरकाल में बना है। ऐसी अनुश्रुति भी है कि यह पाठान्तर तमिल कौर कन्नड़ भाषा के प्रभाव से हुआ है। किन्तु इसकी पुष्टि के लिए कोई स्पष्ट प्रमाण प्राप्त नहीं है। 'अरुह' शब्द का प्रयोग आचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य मे मिलता है। उन्होंने 'अरुहंत' और 'अरहंत' का एक ही अर्थ में प्रयोग किया है। वे दक्षिण के थे, इसलिए 'अरहंत' के अर्थ में 'अरुह' का प्रयोग दक्षिण के उच्चारण से प्रभावित है, इस उपपत्ति की पुष्टि होती है । बोधप्राभृत में उन्होंने 'अर्हत्' का वर्णन किया है। उसमें २८, २९, ३०, ३२-इन चार गाथाओं में 'अरहंत' का प्रयोग है और ३१, ३४, ३६, ३६, ४१ इन पांच गाथाओं में 'अरुह' का प्रयोग है। __आचार्य हेमचन्द्र ने उपलब्ध प्रयोगों के आधार पर अर्हत् शब्द के तीन रूप सिद्ध किए हैं--अरुहो, अरहो, अरिहो, अरुहन्तो अरहन्तो, अरिहन्तो। ____ डॉ० पिशेल ने अरहा, अरिहा, अरुहा और अरिहन्त का विभिन्न भाषाओं की दृष्टि से अध्ययन प्रस्तुत किया है। अरहा, अरहन्त- अर्धमागधी अरिहा -शौरसेनी अरुहा -जैन महाराष्ट्री १. भगवती वृत्ति, पत्र ३ : अरुहंताणमित्यपि पाठान्तरं, तत्र अरोहद्भ्यः अनुपजायमानेभ्यः क्षीणकर्मबीजत्वात्, आह च--- 'दग्धे बीजे यथाऽत्यन्तं, प्रादुर्भवति नांकुरः। कर्मबीजे तथा दग्धे, न रोहति भवांकुरः ॥ २. हेमशब्दानुशाशन, ८/२/१११ : उच्चाहति । ३. कम्पेरेटिव ग्रामर ऑफ दी प्राकृत लेंग्वेजेज, पिशेल ऽऽ १४०, पृष्ठ ११३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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