Book Title: Manan aur Mulyankan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 112
________________ १३. नमस्कार महामन्त्र का मल स्रोत सौर कती नमस्कार महामन्त्र आदि-मंगल के रूप में अनेक आगमों और ग्रन्थों में उपलब्ध होता है । अभयदेव-सूरी ने भगवती सूत्र की वृत्ति के प्रारम्भ में नमस्कार महामन्त्र की व्याख्या की है। प्रज्ञापना के आदर्शों में प्रारम्भ में नमस्कार महामन्त्र लिखा हुआ मिलता है, किंतु म जयगिरि ने प्रज्ञापना वृत्ति में उसकी व्याख्या नहीं की। षट्खंड के प्रारम्भ में नमस्कार महामन्त्र मंगल सूत्र के रूप में उपलब्ध है। इन सब उपलब्धियों से उसके मूल स्रोत का पता नहीं चलता। महानिशीथ में लिखा है कि पंचमंगल महाश्रुतस्कंध का व्याख्यान सूत्र की नियुक्ति, भाष्य और चूणियों में किया गया था और वह व्याख्यान तीर्थंकरों के द्वारा प्राप्त हुआ था। कालदोष से वे नियुक्ति, भाष्य और चूणियां विच्छिन्न हो गयीं। फिर कुछ समय बाद वज्रस्वामी ने नमस्कार महामन्त्र का उद्धार कर उसे मूल सूत्र में स्थापित किया। यह बात वृद्ध सम्प्रदाय के आधार पर लिखी गयी है। इससे भी नमस्कार मंत्र के मूल स्रोत पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता।। ____ आवश्यक नियुक्ति में वज्रसूरी के प्रकरण में उक्त घटना का उल्लेख भी नहीं है। वज्रसूरी दस पूर्वधर हुए हैं। उनका अस्तित्वकाल ई० पू० पहली शताब्दी है। शय्यंभवसूरी चतुर्दश पूर्वधर हुए हैं और उनका अस्तित्वकाल ई० पू० ५-६ १. महानिशीथ, अध्ययन ५, अभिधान राजेन्द्र पृ० १८३५ : इओ य वच्चंतेणं कालेणं समएणं महड्ढिपत्ते पयाणुसारी वइरसामी नाम दुवालसंगसुअहरे समुप्पन्ने। तेण य पंच मंगल महासुयक्खंधस्स उद्धारो मूलसुत्तस्स मझेलिहिओएस वुड्ढसंपयाओ। एयं तु जं पंचमंगल महासुयक्खंधस्स वक्खाणं तं महया पबंधेण अणंतगयपज्जवेहिं सुत्तस्स य पियभूयाहिं णिजुत्तिभासचुन्नीहिं जहेव अणंतनाणदसणधरेहि तित्थयरेहि वक्खाणियं तहेव समासो वक्खाणिज्जतं आसि । अहन्नयाकालपरिहाणिदोसेणं ताओ णिजुत्तिभासचुन्नीओ वुच्छिन्नाओ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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