Book Title: Manan aur Mulyankan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 107
________________ मंगलवाद : नमस्कार महामंत्र ६७ किया है'। इससे ज्ञात होता है कि ई० पू० पहली शताब्दी के आसपास आगमरचना से पूर्व मंगल वाक्य लिखने की पद्धति प्रचलित हो गयी । प्रज्ञापनाकार का मंगल वाक्य उनके द्वारा रचित है। इसे निवद्ध - मंगल कहा जाता है । दूसरों के द्वारा रचे हुए मंगल- वाक्य उद्धृत करने को 'अनिबद्ध-मंगल' कहा जाता है । प्रतिलेखकों ने अपने प्रति-लेखन में कहीं-कहीं अनिबद्ध-मंगल का प्रयोग किया है । इसीलिए मंगल वाक्य लिखने की परंपरा का सही समय खोज निकालना कुछ जटिल हो गया । नमस्कार महामन्त्र के पाठ भेद नमस्कार महामंत्र का बहुत प्रचलित पाठ यह है - णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं । प्राचीन ग्रंथों में इसके अनेक पदों एवं वाक्यों के पाठान्तर मिलते हैं• णमो - नमो • अरहंताणं - अरिहंताणं, अरुहंताणं । • आयरियाणं - आइरियाणं । • णमो लोए सव्वसाहूणं - णमो सव्व साहूणं । • नमो अरहंतानं, नमो सवसिधानं । • णमो नमो -- प्राकृत में आदि में 'न' का 'ण' विकल्प से होता है इसलिए 'नमो', 'नमो' – ये दोनों रूप मिलते हैं । • अरहताणं, अरिहंताणं - प्राकृत में 'अहं' धातु के दो रूप बनते हैंअरहर, अरिहइ । 'अरहंताणं' और 'अरिहंताणं' ये दोनों 'अहं' धातु के शतृ प्रत्ययांत रूप हैं । ' अरहंत' और 'अरिहंत' - इन दोनों में कोई अर्थभेद नहीं है । व्याख्याकारों ने 'अरिहंत' शब्द को संस्कृत की दृष्टि से देखकर उसमें अर्थभेद किया है। अरि + हंत = शत्रु का हनन करने वाला । यह अर्थ शब्द - साम्य के १. प्रज्ञापना, पद १, गाथा १ : ववगजरमरणभए, सिद्धे अभिवंदिऊण तिविहेणं । वंदामि जिनवरिदं, तेलोक्कगुरुं महावीरं ॥ २. धवला, षट्खंडागम १-१-१ पृष्ठ ४२ : तं च मंगलं दुविहं णिबद्धमणिबद्धमिदि । तत्थ णिबद्धं णाम, जो सुत्तस्सादीए सुत्तकत्तारेण कयदेवदाणमोक्कारो तं णिबद्धमंगलं । जो सुत्तस्सादीए सुत्तकत्तारेण णणिबद्धो देवदाणमोक्कारो तमणिबद्धमंगलं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140