Book Title: Manan aur Mulyankan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 36
________________ २६ मनन और मूल्यांकन तक संकल्प स्थूल-मन के स्तर तक ही रहता है तब तक वह स्थायी नहीं होता । जब वह भावना के स्तर पर उतर जाता है तब वह स्थायी बन जाता है । जब संकल्प सूक्ष्म-मन के स्तर पर, सूक्ष्म शरीर के स्तर पर चला जाता है तब वह चेतना की पकड़ में आ जाता है । उस पर विश्वास किया जा सकता है । स्थूल-मन के स्तर पर संकल्प भी विश्वसनीय नहीं होता और इच्छा भी विश्वसनीय नहीं होती । वह पूरी हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती । आवश्यकता है कि हम साधना जो सुझाव देते हैं वे वहां तक पहुंचने चाहिए जहां से सब कुछ संचालित हो रहा है । यदि वहां नहीं पहुंचते है तो कुछ भी घटित नहीं हो सकता । ―― छंदोवणीया -- मनुष्य अपने छंद से संचालित हो रहा है । छंद का अर्थ हैआन्तरिक संस्कार । यही अविरति है, अविरति का मूल है। जहां इच्छा का मूल है, वहां से सारा संचालित हो रहा है। जब इच्छा से संचालित हैं, पूर्वकृत संस्कारों और वासनाओं से संचालित हैं, भावना के स्तर पर संचालित हैं तब अज्झोववण्णावहां से आसक्ति आती है, आसक्ति का संबंध जुड़ा हुआ रहता है। जहां इच्छा है, अविरति है वहां आसक्ति है | स्थूल अर्थ में हम कह देते हैं - यह काम मैं निर्मल मन से कर रहा हूं, इसमें मेरा कोई स्वार्थ नहीं है, मेरी कोई आसक्ति नहीं है | यह काम निःस्वार्थ भाव से केवल कर्त्तव्य निभाने के लिए कर रहा हूं ' परन्तु निर्मलता और निःस्वार्थ भाव को पहचान पाना या पकड़ पाना इतना सरल नहीं है । उन्हें पहचानना कठिन कर्म है । कभी-कभी लोग कह देते हैं कि हम यह काम अन्तरात्मा की आवाज से करते हैं । वास्तव में जो अन्तरात्मा की आवाज से किया जाता है वह कभी गलत नहीं होता, वह सही ही होगा । वह धर्म का कार्य होगा, अधर्म का नहीं । परंतु सबसे बड़ी कठिनाई है कि अन्तरात्मा की आवाज किसे कहा जाए ? उसकी पहचान क्या है ? लोग अन्तरात्मा की आवाज के आधार पर संघर्ष भी कर लेते हैं, संघटनों को तोड़ डालते हैं, और भी ऐसी ही हरकतें कर डालते हैं। क्या अन्तरात्मा की आवाज से ये अधर्म कार्य संभव हैं ? क्या अन्तरात्मा इनको आज्ञा दे सकती है ? अन्तरात्मा की आवाज - यह भ्रम है | अन्तरात्मा के आवाज की बात एक वीतरागी कह सकता है । वह व्यक्ति कह सकता है जो निर्मल है, जिसके सारे मल नष्ट हो गए हैं। उसके अन्तर् से जो आवाज उठेगी, वह सदा सत् होगी, असत् नहीं, अच्छी होगी, बुरी नहीं । वह व्यक्ति अन्तरात्मा की आवाज का दावा कर सकता है। हर कोई व्यक्ति कहे कि यह मेरी अन्तरात्मा की आवाज है तो वह धोखा है, भ्रम है। हर व्यक्ति की अन्त । क्योंकि अन्तरात्मा रात्मा की आवाज अच्छी ही होती है यह नियामकता नहीं है में कषाय भी हैं, दोष भी हैं, मल भी हैं, बुरे संस्कार भी हैं । कषाय भी आध्यात्मिक हैं, क्योंकि वे भीतर में होते हैं । भीतर में होने मात्र से कोई अच्छा नहीं हो जाता । भीतर में अच्छाइयां हैं तो बुराइयां भी हैं। अच्छे संस्कार हैं तो बुरे संस्कार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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