Book Title: Manan aur Mulyankan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 49
________________ आचार-शास्त्र के आधारभूत तत्त्व ( १ ) ३६ आध्यात्मिक पक्ष में धर्म और मोक्ष पर चिंतन किया गया। दोनों पक्षों में चारों पुरुषार्थ समा जाते हैं । हेराक्लाइटस ने यह प्रश्न उपस्थित किया - आचार क्यों ? आचार को जानने लिए जगत् की प्रकृति का अध्ययन जरूरी है । निष्कर्ष निकाला कि जगत् का मूल तत्त्व है - कठोरता और रूक्षता । हमारे जीवन का उद्देश्य है -- प्रकाश करना अंधकार को समाप्त करना । आर्द्रता को समाप्त कर रूक्षता का विकास करना, रूक्षता का अर्जन करना। हेराक्लाइटस ने कहा - keep your life dry — जीवन को रूखा बनाओ। उनके दर्शन के आधार पर संयम का विकास हुआ। इच्छाओं पर नियंत्रण पाना उनका मुख्य आधार-सूत्र बन गया । आश्चर्य की बात है | dry का पर्यायशब्द रूक्ष है । भगवान् महावीर की वाणी में संयम का पर्यायवाची शब्द रूक्ष है । भगवान् महावीर और हेराक्लाइटस का समय आसपास का ही है । क्षेत्रीय दूरी होने पर भी दोनों ने संयम के अर्थ में एक ही शब्द का प्रयोग किया है । हेराक्लाइटस के रूक्षता के सिद्धान्त के आधार पर इच्छाओं पर नियंत्रण पाने, संयम करने के सिद्धान्त का विकास हुआ । यही आचार - शास्त्र का मूल सूत्र बना । कुछ समत पश्चात् डेमोक्रेटस ने इच्छातृप्ति और सुखोपलब्धि का सूत्र दिया । इनके आधार पर अचारशास्त्र की नींव डाली गई । महावीर ने जिस आचारशास्त्र का प्रतिपादन किया, उसमें सुख और दुःख की परिभाषा बदल गई । व्यवहार में पूछा जाता है— तुम सुख चाहते हो या दुःख ? उत्तर होगा - सुख चाहता हूं, दुःख कभी नहीं चाहता । सुख चाहना और दुःख न चाहना – यह मनुष्य की प्रकृति है । इस आधार पर दो सिद्धान्तों— सुखवाद और दुखवाद का विकास हुआ। किन्तु महावीर ने भाषा बदल दी। उन्होंने दो शब्दों का प्रयोग किया—बंध और मोक्ष | दो धाराएं हैं-लौकिक और आध्यात्मिक । लौकिक धारा पहले से प्रचलित श्री । समाजशास्त्रियों और अर्थशास्त्रियों ने इसका विकास किया । कुछ लोग कहते हैं कि जैन-दर्शन अधूरा है, पूरा नहीं है क्योंकि वह जीवन की समग्र धाराओं का प्रतिपादन नहीं करता । वह केवल अध्यात्म पक्ष है, केवल क्ष की बात करता है । यह एकपक्षीय प्रतिपादन है । यह कथन सर्वथा यथार्थ भी नहीं है और सर्वथा अयथार्थ भी नहीं है । जैन दर्शन अध्यात्म-दर्शन है, इसलिए वह एक ही पक्ष का प्रतिपादन करता है । वह धर्म और मोक्ष का प्रतिपादन करता है, अर्थ और काम का प्रतिपादन नहीं करता । धर्म और मोक्ष जीवन का एक पक्ष है, उसी प्रकार अर्थ और काम भी जीवन का एक पक्ष है। दोनों मिलकर जीवन की पूर्ण व्याख्या प्रस्तुत करते हैं । यह आरोप या कथन यूनानी दार्शनिकों की दार्शनिक सृष्टि के बाद यहां फैला, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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