Book Title: Manan aur Mulyankan Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Adarsh Sahitya SanghPage 45
________________ आत्म-तुला और मानसिक अहिंसा ३५ विधान है कि मुनि अदत्त कुछ भी न ले । वस्त्र, पात्र, मकान आदि की याचना करे और गृहस्वामी की आज्ञा से ले । अवग्रह (स्थान) की याचना करे । अनुमति मिलने पर वहां रहे और न मिलने पर न रहे। उस गांव में स्थान एक ही है। आगंतुक साधु-संन्यासी अनेक हैं। पहले जाने वाला वहां स्थान को रोक सकता है अब उसे स्वामी की आज्ञा प्राप्त करनी है। स्वामी की आज्ञा लेने जाए और पीछे से कोई दूसरा आकर ठहर जाए तो उसे कठिनाई हो सकती है। ऐसी स्थिति में यह विधान किया गया कि वह पहले उस स्थान में ठहर जाए और पश्चात् आज्ञा ले। मूल नियम है-अवग्रह (गृहस्वामी की आज्ञा) के बिना किसी मकान में न रहे। किन्तु जब यह नियम व्यवहार में आया तब कुछ समस्याएं आई। इसमें कुछ परिवर्तन और संशोधन कर दिया गया कि पहले ठहर जाओ, बाद में आज्ञा ले लेना। पहले ठहरने में कोई अदत्त या चोरी की भावना तो है नहीं, किन्तु परिस्थितिवश बिना आज्ञा ठहरना पड़ रहा है। नियमों में जो ये परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं वे सामाजिक समस्याओं के संदर्भ में हुए हैं। फिर भी यह ध्यान रखा गया कि भाव-हिंसा न हो। द्रव्य-हिंसा का सिद्धांत इसमें विकसित हुआ। इसे हम द्रव्य-चोरी कह सकते है, किन्तु भावचोरी नहीं कह सकते। इस प्रकार द्रव्य-हिंसा-भाव-हिंसा, द्रव्य-असत्य-भावअसत्य, द्रव्य-चोरी-भाव-चोरी-ये युगल बन गए । द्रव्य और भाव का सिद्धांत विकसित हुआ और इस आधार पर अनेक निर्णय लिये जाने लगे। पुस्तक धर्मोपकरण है, द्रव्य परिग्रह है, परभाव परिग्रह नहीं है। यह सीमा का विस्तार उत्तरकाल में हुआ। परिग्रह की सीमा विस्तृत हो गई। मुनि जब पान रख सकता है, वस्त्र रख सकता है तो पुस्तक क्यों नहीं रख सकता? पुस्तक यदि परिग्रह है तो वस्त्र-पान परिग्रह क्यों नहीं है ? उन्हें यदि द्रव्य परिग्रह माना जाए तो पुस्तक को द्रव्य परिग्रह क्यों नहीं माना जा सकता? इस आधार पर नियमों में परिवर्तन हुए हैं और उन नियमों को कसौटी के रूप में देखें तो यह स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं है कि महावीर द्वारा प्रतिपादित जो मूल सिद्धांत थे उनका विस्तार सामाजिक संदर्भो में होता रहा है। (आचारांग के आधार पर-पांचवां प्रवचन-लाडनूं १७-१२-७७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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