Book Title: Manan aur Mulyankan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 16
________________ ६ मनन और मूल्यांकन अनुसचरण करता है। जो दिशाओं और विदिशाओं में अनुसंचरण करता है, परिभ्रमण कर रहा है वह मैं हं । अब प्रश्न यह उठता है कि 'मैं हूँ और अनुसंचरण पुद्गल के योग से कर रहा हूं, क्रिया और कर्म के कारण कर रहा हूं, तो क्या इस अनुसंचरण को बंद किया जा सकता है ? इसके उत्तर में कहा गया है कि अनुसंचरण को रोका जा सकता है। जब अनुसंचरण, कर्म और बंध के हेतुआस्रव का ज्ञान हो जाता है तब आस्रव के साथ-साथ संवर का भी ज्ञान हो जाता है। इन कर्म-समारंभों और क्रियाओं को रोका जा सके तो कर्म-बंध को रोका जा सकता है। जब अनुसंचरण रुक जाता है तो स्वाभाविक सत्ता और स्वाभाविक स्थिरता प्राप्त की जा सकती है। समूचे आलापक में आत्मा, पुद्गल (अजीव), कर्म अर्थात् कर्म की तीन अवस्थाएं-बंध, पुण्य और पाप तथा आस्रव और संवर-ये सात तत्त्व फलित होते हैं। महावीर ने सबसे पहले नौ तत्वों का विवेचन किया। यह आचारांग के आधार पर कहा जा सकता है। पंचास्तिकाय या षट् द्रव्य का प्रतिपादन इसके अनन्तर हुआ। मूल तत्त्व नौ हैं। साधना के क्षेत्र में षट् द्रव्यों या पंचास्तिकाय का कोई विशेष प्रयोजन नहीं है । साधना के क्षेत्र में नौ तत्त्वों का ही प्रयोजन है और उन्हीं के आधार पर सारी आचार-व्यवस्था बनी है। षट् द्रव्य का निरूपण जगत्व्यवस्था के सम्बन्ध में हो सकता है। यहां उसका विशेष प्रयोजन नहीं है। कर्म को हम एक तत्त्व माने या विस्तार में उसके तीन भाग मान लें-बंध, पुण्य और . पाप। एक अव्याकृत, अज्ञात आत्मा को जान लेने पर दुःख क्या है ? दुःख क्यों है ? दुःख को कैसे रोका जा सकता है ?-ये तीनों प्रश्न एक साथ समाहित हो जाते हैं। जैसे 'चित्तवृत्ति-निरोध' से योग का प्रारंभ होता है, वैसे ही 'आस्रव-निरोध' से आत्मवाद का या आचारांग में निरूपित आचार का प्रारंभ होता है। . (आचारांग के आधार पर-पहला प्रवचन-लाडनूं १२-१२-७७) जिज्ञासा : समाधान प्रश्न : महावीर से पहले दर्शन के क्षेत्र में यह जिज्ञासा उठती रही है कि संसार की उत्पत्ति कैसे हई ? यही जिज्ञासा वैदिक और यूनानी दर्शन में भी प्राप्त होती है। इस मौलिक तत्त्व को खोजने का प्रयत्न हुआ कि सृष्टि का मूल क्या है ? किन्तु महावीर ने यह नहीं खोजा कि सृष्टि कहां से उत्पन्न हुई है? उन्होंने खोजा थाजीव कहां से आया है ? ये तो भिन्न खोजों की बातें हैं। एक कहता है-सृष्टि कहां से आई और दूसरा कहता है-जीव कहां से आया ? इन दोनों में मौलिक भेद क्या है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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