Book Title: Manan aur Mulyankan Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Adarsh Sahitya SanghPage 31
________________ आचार का पहला सूत्र २१ और त्रस । प्रस्तुत सूत्र में इस क्रम का व्यत्यय हुआ है । वायु चौथा भूत था, वह यहां अन्त में रखा गया है। यह व्यत्यय और किसी सूत्र में प्राप्त नहीं है। यहां चौथा भूत वनस्पति है और छठा वायु । इसका भी महत्त्वपूर्ण कारण है। चार जीवनिकाय केवल स्थावर हैं--पृथ्वी, जल, अग्नि और वनस्पति। इनके बाद बस का क्रम आता है । वायु त्रस और स्थावर-दोनों में माना जाता है, क्योंकि यह गतिशील है। गतिशील होने के कारण यह गतित्रस है, किन्तु गतिलब्धियुक्त नहीं है, अतः स्थावर है। यह नया वर्गीकरण बन गया। वायु त्रस भी है और स्थावर भी है। बाद की परम्परा में, स्थानांग सूत्र में, अग्नि और वायु-दोनों को त्रस माना है। तत्त्वार्थ सूत्र में भी वायु को त्रस माना है। आचारांग सूत्र में अग्नि को त्रस की कोटि में नहीं गिना, किन्तु वायु को ही त्रस माना है। इसका एक कारण यह हो सकता है कि अग्नि की जो ऊर्ध्वगति होती है, तिर्यग् गति होती है वह वायु के कारण होती है। वायु की गति स्वतः है, वह किसी के द्वारा प्रेरित नहीं है। वैसी गति अग्नि की नहीं है । अतः वायु को ही त्रस माना गया। अग्नि के बाद वनस्पति का निरूपण है। यह सम्भव है कि अहिंसा के सन्दर्भ में चौथा जीव-निकाय वनस्पति है। यह बहुत बड़ा जगत् है। अनादि जगत् है, जीवों का अक्षय कोष है। इसे भी दीर्घलोक की संज्ञा से अभिहित किया गया है। यह जीवों का अक्षय कोष है। समूचे जीवों का विकास वनस्पति से ही सम्भव हुआ है। जो जीव मुक्त होता है, उसकी पूर्ति वनस्पति से होती है। यह कभी खाली नहीं होता। ऐसे जीव भी वनस्पति में प्राप्त होते हैं जो वनस्पति को छोड़कर कभी बाहर नहीं आए। वे अव्यवहार राशि के जीव हैं । उनका विकास कभी नहीं हुआ। (आचारांग के आधार पर-तीसरा प्रवचन-लाडनूं १४-१२-७७) जिज्ञासा : समाधान प्रश्न : जीवन की कुछ अनिवार्य आवश्यकताएं होती हैं। जैसे पानी, वायु आदि। क्या पृथ्वीकाय के जीवों को भी इनकी आवश्यकता है ? क्या इनके बिना वे जीवित रह सकते हैं ? उत्तर : जैसे मनुष्य की आवश्यकताएं हैं, वैसे ही उन जीवों की भी आवश्यकताएं हैं। किन्तु श्वास की आवश्यकता सब जीवों में है। पृथ्वी में भी आनापान है। आनापान के बिना कोई जीवित नहीं रह सकता। जितने भी जीव-निकाय हैं, उन सबको वायु की आवश्यकता होती है। वायु को भी आनापान की आवश्यकता होती है। प्रश्न : इसका अर्थ यह हुआ कि चन्द्रमा पर वायुकाय नहीं है, अतः वहां का पृथ्वीकाय अचित्त है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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